सरसों को राष्ट्रीय एजेंडे में लाने की जरूरत क्यों
नई दिल्ली, 23 जनवरी (आईएएनएस)| गाजर 10वीं शताब्दी के आसपास अफगानिस्तान से आया था, आलू को पुर्तगाली 17वीं शताब्दी में लेकर आए थे। हालांकि सरसों के बारे में ऐसा नहीं है कि यह किसी दूसरे देश से आया हो। यह भारतीय मूल का खाद्यान्न है और हजारों साल से इसका इस्तेमाल हो रहा है। खाद्य इतिहासकारों का कहना है कि सरसों की खेती हिमालय की तलहटी में 3000 ईसा पूर्व में होती थी — लेकिन दुख की बात है कि अभी तक सरसों को वह सहायता और प्रोत्साहन नहीं मिल पाया है, जो किसी पुरातन विरासत की फसल को मिलनी चाहिए थी।
मूंगफली के बाद सरसों देश की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। साथ ही यह देश की सबसे महत्वपूर्ण सर्दियों की तिलहन फसल है। इस साल (वित्त वर्ष 2017-18) देश में तिलहन की बंपर पैदावार होने का अनुमान है, लेकिन इससे यह तथ्य बदल नहीं जाता कि भारत जरूरत के मुताबिक तिलहन का उत्पादन नहीं कर पाता और इसके आयात पर निर्भर है। देश में औसतन हर साल 1.5 करोड़ टन खाद्य तेल का आयात किया जाता है, ताकि मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को पाटा जा सके। देश में मुख्यत: मलेशिया और इंडोनेशिया से ताड़ तेल का तथा ब्राजील और अर्जेटीना से सोयाबीन तेल का आयात किया जाता है।
बात जब सरसों तेल की आती है, तो हाल के सालों में चिकित्सा और वैज्ञानिक समुदाय ने इससे मिलने वाले महत्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभ की एक बार फिर से खोज की है। अध्ययनों की श्रृंखला से पता चलता है कि भारत में देश भर में प्रचलित आहार की आदतें, जीवनशैली और पाक प्रथाओं को देखते हुए दिल के स्वास्थ्य के लिए यह सबसे बेहतर खाद्य तेल है।
इस पृष्ठभूमि में, यह सरकार द्वारा सरसों को राष्ट्रीय फसल घोषित करने का एक मजबूत मामला बनता है। इसलिए सरकार को ऐसी नीतिगत पहल करनी चाहिए कि यह किसानों के लिए नकदी फसल बने, सरसों की खेती का रकबा बढ़े, सरसों के उत्पादन में बढ़ोतरी कर घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की मांग और आपूर्ति का अंतर समाप्त हो। इससे खाद्य तेलों के आयात में कमी आएगी और मूल्यवान विदेशी मुद्रा की बचत होगी। इसके अलावा, सरसों का तेल ऐतिहासिक रूप से एक भारतीय उत्पाद है, ऐसी नीतियां सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल के साथ सहजता से स्थापित होंगी।
हालांकि, दीर्घकालिक आधार पर सरसों का रकबा और सरसों तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिए अकेले नीतियां पर्याप्त नहीं हैं। कुछ समय से, हम सरकार से सरसों तेल विकास बोर्ड की स्थापना करने की सिफारिश कर रहे हैं। मोटे तौर पर, इस तरह के बोर्ड को अमेरिका की सोयाबीन एसोसिएशन की तर्ज पर तैयार किया जा सकता है। एसोसिएशन सभी सोयाबीन हितधारकों के हितों की देखरेख करता है, जिसमें किसानों से लेकर तेल निर्माताओं को शामिल किया जाता है। यह एसोसिएशन कांग्रेस और प्रशासन के साथ सक्रिय रूप से पैरवी करते हुए यह सुनिश्चित करता है कि उनके हित और दांव संरक्षित रहें, ना सिर्फ अमेरिका, बल्कि अन्य देशों में भी।
इसी तरह, स्पेन ने जैतून और जैतून के तेल उत्पादकों के हितों को सुरक्षित रखने और बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऑलिव परिषद की स्थापना एक अंतरसरकारी एजेंसी के रूप में की है। इस तरह के बोर्ड का एक और उदाहरण मलेशियाई ताड़ तेल बोर्ड है, जो एक अग्रणी सरकारी एजेंसी है और इसकी जिम्मेदारी में ताड़ तेल को बढ़ावा देना है। वास्तव में, मलेशिया सरकार इस प्रचार अभियान की अगुवाई करती है और विश्वस्तर पर केवल व्यापार-से-व्यापार स्तर के बजाए सरकारी स्तर पर भी बढ़ावा देती है। इस प्रकार से मलेशिया ने ताड़ तेल का बाजार बनाने में कामयाबी हासिल की है।
भारत में, सरसों तेल को अगर इस तरह से बढ़ावा दिया जाए, तो इसका काफी फायदा होगा। सरसों के विकास को बढ़ावा देने के लिए केंद्र को सरसों तेल विकास बोर्ड को स्थापित करना चाहिए। इसे राष्ट्रीय फसल के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण खाद्य तेल के रूप में भी बढ़ावा देना चाहिए। यह सरसों के उद्योग के विकास के लिए एक एकीकृत ष्टिकोण को सुनिश्चित कर सकता है, खेती के क्षेत्र में विस्तार कर सकता है, किसानों को लाभकारी कीमतें दिला सकता है, उत्पादकता में वृद्धि कर सकता है और अतिरिक्त मूल्य वर्धन कर सकता है। यह बोर्ड दुनिया में सरसों, सरसों के तेल और सरसों-आधारित उत्पादों के निर्यात में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर का एक और महत्वपूर्ण पहलू -जलवायु परिवर्तन है। किसी भी देश को इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण सुधारात्मक कदम गैर प्रदूषणकारी, पर्यावरण अनुकूल व्यवसायों को बढ़ावा देना हो सकता है। सरसों तेल उद्योग ऐसा ही एक व्यवसाय है। यह उद्योग विनिर्माण प्रक्रिया में कोल्ड-प्रेसिंग प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हैं और वे रसायनों का उपयोग नहीं करते हैं तथा किसी प्रकार के जहरीले कचरे का उत्पादन नहीं करते हैं और किसी भी प्रदूषक को नहीं छोड़ते हैं। इसे देखते हुए, सरकार को सरसों के तेल उत्पादन क्षेत्र को वित्तीय प्रोत्साहन, सब्सिडी और कार्बन क्रेडिट देनी चाहिए।
ऐसे कई अन्य क्षेत्र भी हैं, जिनमें अनुकूल नीतियां और मौजूदा नीतियों के संशोधन से सरसों के क्षेत्र का लाभ हो सकता है और इसके विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है। उदाहरण के लिए, हाल में लागू किए गए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में कुछ विसंगतियां हैं, जो सरसों तेल निर्माताओं के हितों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रही हैं। सरसों के व्यापार में एक खासियत है, जो शायद किसी भी अन्य व्यवसाय में मौजूद नहीं है। सरसों के तेल के उत्पादन के साथ खली (ऑयलकेक) तो वास्तविक तेल का तीन गुणा तक होगा। इस उप-उत्पाद की पशु आहार के रूप में बिक्री की जाती है, इसलिए जीएसटी के अंतर्गत इसे करमुक्त कर देना चाहिए।
निष्कर्ष यह है कि सरसों एक महत्वपूर्ण भारतीय फसल है और सरसों का तेल एक प्राचीन व पारंपरिक भारतीय उत्पाद है। इसलिए इस क्षेत्र के हित में तैयार की गई सरकारी नीतियों से लाखों किसानों, श्रमिकों और उपभोक्ताओं को फायदा होगा, जो देश के सरसों तेल क्षेत्र के वास्तविक हितधारक हैं। चूंकि भारत में खाद्य तेलों में मांग-आपूर्ति का अंतर लगातार जारी है, इसलिए राष्ट्रीय एजेंडे पर सरसों को लाने का यह सही समय है।
(विवेक पुरी, पुरी ऑयल मिल्स लि. के प्रबंध निदेशक हैं। यह कंपनी पी मार्क ब्रांड से सरसों तेल बनाती है।)