OMG! 14 साल के लड़के के शरीर से कीड़े दो साल में पी गए 22 लीटर खून
नई दिल्ली। सरकार बच्चों के पेट में कीड़े (कृमि) की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चला रही है। फिर भी कहीं—कहीं पर सरकार ये प्रयास हवा हवाई ही साबित हो रहे हैं। बता दें कि बच्चों के लिए कृमि कितने घातक साबित हो सकते हैं इसका अंदाजा आपको गंगाराम अस्पताल में सामने आए एक मामले से लग सकता है।
आश्चर्यजनक बात तो ये है कि यहां दो साल में पेट के कीड़े 22 लीटर खून पी गए। यह सुनकर शायद आपको विश्वास नहीं होगा, लेकिन यह सच है। 14 वर्षीय किशोर वर्ष 2015 से 50 यूनिट ब्लड चढ़वा चुका था, लेकिन उसकी बीमारी जस की तस बनी हुई थी, ठीक ही नहीं हो रही थी।
कई जगह उपचार कराने के बाद उत्तराखंड के हल्द्वानी निवासी यह बच्चा दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल पहुंचा तो डॉक्टरों ने गहन जांच की। इसके बाद इतनी मात्रा में रक्त की कमी होने का कारण समझ आया। बता दें कि इलाज के बाद फिलहाल अब बच्चा पूर्णतया स्वस्थ बताया जा रहा है।
सर गंगाराम अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी के चेयरमेन डॉ. अनिल अरोड़ा बताते हैं कि छह महीने पहले इस बच्चे को अस्पताल लाया गया था। कई जगह उपचार के बाद भी उसे लाभ नहीं मिला था। बच्चा दो वर्ष से एनीमिया का रोगी था। उसे बार-बार ब्लड चढ़ने और दो साल में 22 लीटर रक्त का नुकसान होने की जानकारी मिली तो यह चौंकाने वाली थी। एंडिस्कोपी जांच सामान्य थी।
डॉ. अरोड़ा ने कहा कि कैप्सूल एंडिस्कोपी की गई तो पता चला कि छोटी आंत में कई सारे कीड़े एक तरह से नृत्य सा कर रहे हैं और उसका खून चूस रहे हैं। यह स्थिति अत्यंत गंभीर और चौंकाने वाली थी। बता दें कि आलम यह था कि खून पी-पीकर कीड़ों का रंग भी लाल हो चुका था, जबकि ये सफेद रंग के होते हैं। इसके बाद बच्चे का उपचार किया गया और अब उसका हीमोग्लोबिन 11 है।
देश में कैप्सूल एंडिस्कोपी 4-5 वर्ष पहले ही शुरू हुई है। डॉक्टरों के अनुसार, छोटी आंत में किसी भी तरह की गतिविधि का पता लगाने के लिए यह सबसे बेहतर पद्घति है। इस कैप्सूल में एक कैमरा लगा होता है, जो शरीर के अंदर जाकर प्रति सेकंड दो तस्वीर लेता है।
यह कैमरा 12 घंटे तक ही काम करता है और इसके बाद मल के रास्ते निकल जाता है। इस दौरान कैमरा छोटी आंत की करीब 70 हजार तस्वीरें लेता है। यह सभी फोटो पेट के ऊपरी हिस्से पर बंधी बैल्ट में लगे एक रिकॉर्डर में सुरक्षित होती हैं।
डॉ. अरोड़ा का कहना है कि समय रहते बच्चे की सही जांच हो जाती तो उसे दो साल में 22 लीटर खून चढ़ाना नहीं पड़ता। उनका कहना है कि कैप्सूल एंडिस्कोपी की सुविधा और इसकी विशेषज्ञता बहुत ही कम अस्पतालों में है। वहीं, लोगों को भी इसकी जानकारी भी नहीं है। उन्होंने बताया कि यह केस मेडिकल जर्नल ऑफ इन्फेक्शन एंड थैरेपी में प्रकाशित भी हो
चुका है।