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साहित्य ऐसा हो, जो जनमानस पर असर डाले : सुधीश पचौरी

पटना, 10 दिसंबर (आईएएनएस)| प्रसिद्ध लेखक व दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. सुधीश पचौरी ने यहां रविवार को कहा कि ऐसे साहित्य का सृजन हो, जो जनमानस पर असर डाले।

उन्होंने लेखकों की बढ़ती जिम्मेदारी की ओर इशारा करते हुए कहा कि आज के समय में पाठकों के पास मनोरंजन के बहुत से साधन हैं। ऐसे में पाठक लेखक की रचनाएं क्यों पढ़ें? प्रो. पचौरी पटना पुस्तक मेले में दैनिक जागरण की मुहिम ‘हिंदी हैं हम’ के तहत आयोजित जागरण वातार्लाप कार्यक्रम में ‘लोकप्रिय बनाम गंभीर साहित्य’ विषय पर हुई परिचर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद थे।

विषय पर प्रकाश डालते हुए पचौरी ने कहा कि समय के साथ हर साहित्य की लोकप्रियता बढ़ जाती है। देश में ऐसे साहित्य का सृजन हो, जो जनमानस पर असर डाले, न कि चंद लोगों पर। समय बदल रहा है, ऐसे में लेखकों को पाठकों के मनोरंजन के लिए भी कुछ लिखना होगा। आज के दौर में पाठकों के पास मनोरंजन के लिए बहुत से साधन हैं। ऐसे में पाठक लेखक की रचनाओं को क्यों पढ़ें?

साहित्य की लोकप्रियता के संदर्भ में पचौरी ने भक्तिकाल के कवियों पर प्रकाश डालते हुए कहा, भक्ति भी कॉमेडी का फुल पैकेज है। तभी तो रामायण, महाभारत जैसे सीरियल पड़ोसी मुल्क में खूब देखे गए।

गंभीर साहित्य पर उन्होंने कहा कि तुलसीदास ने कई रचनाएं कीं, लेकिन उनका अंतिम क्षण कितना दर्द भरा रहा। कार्ल मार्क्स ने भी कहा था कि धर्म हृदयहीन संसार का चित्त है।

पचौरी ने कालजयी रचनाकारों- नागार्जुन, रेणु, दिनकर का जिक्र करते हुए कहा कि ये साहित्यकार काफी प्रसिद्ध हुए, क्योंकि उनकी रचनाओं में जनता का दर्द था।

उन्होंने कहा कि लेखकों में सत्ता का खौफ नहीं होना चाहिए। इंदिरा गांधी के बारे में नागार्जुन ने कई कविताएं लिखीं, लेकिन उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई।

प्रो. पचौरी ने कहा, देश में 80 करोड़ हिंदीभाषी जनता है। बहुत सारे प्रसिद्ध कवि दिल्ली में रहते हैं। लेकिन आप देखें कि कितनी रचनाएं लिखी जा रही हैं। कई लेखकों का संकलन छपता नहीं, इससे पहले उन्हें पुरस्कार मिल जाता है। कोई पुरस्कार से लोकप्रिय नहीं होता। लोकप्रिय होना है तो रचनाओं को पाठकों का कंठहार बनाएं।

परिचर्चा के दौरान लेखक व पत्रकार अनंत विजय, कवयित्री निवेदिता झा, सीआईएसएफ के आईजी आई.सी. पांडेय, फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम और लेखक रत्नेश्वर भी मौजूद थे।

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