असल प्रकृति की झलक है त्रिपुरा की धरती
अगर आप इतिहास के पन्नो को पलटने में या उसे जानने में रूचि रखते है तो इससे बेहतर खबर आपके लिए कुछ भी नहीं हो सकती, तो चलिए सैर कराते है आपकी प्रकृति की असल झलक रखने वाली त्रिपुरा की धरती पर-
नॉर्थईस्ट इंडिया में त्रिपुरा एक पहाड़ी राज्य है। आप को त्रिपुरा जाने के लिए हर प्रमुख शहर से बस की सुविधा मिलेगी जिससे आप त्रिपुरा की राजधानी अगरतला पहुंच सकते हैं। आप कोलकाता से हवाई यात्रा के जरिए भी त्रिपुरा पहुंच सकते हैं।
विश्वस्तर पर जिमनास्ट में भारत को पहचान दिलाने वाली दीपा करमाकर भी इसी राज्य की हैं। यहां संस्कृति के साथ विरासत की झलक दिखाई देती है। यहां आप को हर ओर सिर्फ प्रकृति की सुंदरता ही नजर आएगी।
यहां के शहर अपनी विशिष्ट संस्कृति, विरासत तथा स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है। त्रिपुरा में बंगलादेशी, भारतीय बंगालियों के साथ कई जनजातियों की जीवनशैली का प्रभाव नजर आता है। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला होआरा नदी के तट पर बसी है। इसे 1760 में त्रिपुरा राजघराने की राजधानी बनाया गया था।
महाराजा कृष्णमाणिक्य उस समय उदयपुर से अपनी राजधानी सिर्फ सरल आवाजाही और खुले स्थान के लिए यहां लेकर आए थे। उदयपुर तब उत्तर-पूर्वी भारत का एक राज्य था। यहां के महल, सड़कें तथा जल आपूर्ति के लिए तालाब 1838 में महाराजा कृष्णकिशोर माणिक्य के द्वारा करवाए गए थे।
नदी किनारे बसे हुये उज्जयंत महल की खूबसूरती देखते ही बनती है। 19वीं सदी की शुरूआत में बना यह महल भारतीय-अरबी स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। इसके विशालकाय गुम्बद तथा लम्बे-लम्बे बरामदे, नक्काशीदार दरवाजे तथा फव्वारे किसी का भी मन मोह लें।
यह महल 1947 तक अगरतला पर राज करने वाले माणिक्य राजवंश का आवास था। महल के एक हिस्से अंदर महल में आज भी उनके वंशज रहते हैं।
उदयपुर का अन्य प्राचीन मंदिर है भुवनेश्वरी मंदिर। 17वीं सदी में निर्मित यह मंदिर गोमती नदी के तट तथा पुराने शाही महल के करीब है। यह महल अब खंडहर में बदल गया है। महान लेखक रबीन्द्रनाथ टैगोर भी इस शक्तिपीठ से काफी प्रभावित थे। उन्होंने अपने उपन्यास तथा नाटक में इसका जिक्र किया है। त्रिपुरा का एक अन्य बेहद सुंदर आकर्षण नीरमहल है जो अगरतला से 54 किलोमीटर दूर है।