हम लोग तो पहले शास्त्रार्थ करने के लिए ललकारते हैं
सन् 1955 में इन्होंने चित्रकूट में एक विराट दार्शनिक सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसमें काशी आदि स्थानों के अनेक विद्वान एवं समस्त जगद्गुरु भी सम्मिलित हुए। सन् 1956 में ऐसा ही एक विराट संत सम्मेलन इन्होंने कानपुर में आयोजित किया था।
इनके समस्त वेद शास्त्रों के अद्वितीय, असाधारण ज्ञान से वहाँ उपस्थित काशी के मूर्धन्य विद्वान् स्तम्भित रह गये।
उस समय इनके सम्बन्ध में काशी के प्रख्यात पंडित, शास्त्रार्थ महाविद्यालय (काशी) के संस्थापक, शास्त्रार्थ महारथी, भारत के सर्वमान्य एवं अग्रगण्य दार्शनिक, काशी विद्वत्परिषत् के प्रधानमंत्री आचार्य श्री राजनारायण जी शुक्ल ‘षट्शास्त्री’ ने सार्वजनिक रूप से जो घोषणा की थी, उसका अंश इस प्रकार है- (कानपुर 19-10-56)
‘‘काशी के पंडित आसानी से किसी को समस्त शास्त्रों का विद्वान् नहीं स्वीकार करते। हम लोग तो पहले शास्त्रार्थ करने के लिए ललकारते हैं। हम उसे हर प्रकार से कसौटी पर कसते हैं और तब उसे शास्त्रज्ञ स्वीकार करते हैं।
हम आज इस मंच से इस विशाल विद्वन्मंडल को यह बताना चाहते हैं कि हमने संताग्रगण्य श्री कृपालु जी महाराज एवं उनकी भगवद्दत्त प्रतिभा को पहचाना है और हम आपको सलाह देना चाहते हैं कि आप भी इनको पहचानें और इनसे लाभ उठायें।