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नाग पंचमी विशेष: इंसान नहीं, नागों को जन्म देकर ऐसे शुरू किया ‘नागवंश’

लखनऊ। पूरे देश में शुक्रवार को नागपंचमा का त्योहार मनाया गया। मार्गशीर्ष में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि द्वितीय नागपंचमी के नाम से जानी जाती है।नाग देव को शंकर भगवान का विशिष्ट आभूषण कहा गया है, जिसे वे हमेशा गले में धारण करे रहते हैं।

ऐसा माना जाता है कि हमारी धरती भी शेषनाग पर टिकी हुई है। समुद्र मंथन की कथा ‘बासुकी नाग’ से जुड़ी है तो कृष्ण की बाल लीलाओं में ‘कालिया नाग’ की कथा बड़ी ही रोचक है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार दक्ष प्रजापति की कन्या कद्रू का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ था और कद्रू ने 1000 नागों को जन्म दिया था। इस वंश को नागवंश कहा गया।

हिन्दू धर्म के साथ जैन, बौद्ध आदि धर्मों में भी ‘नाग’ को प्रणम्य भाव से स्वीकार किया गया है। भारतीय सभ्यता-संस्कृति में पाषाणयुगीन समाज के बाद सैन्धव सभ्यता के प्राचीनतम् सिक्कों में नाग का अंकन है। वहीं मौर्यकालीन, गुप्तकालीन सिक्कों में भी नाग को स्थान दिया गया है। देश के कई तीर्थों मणियार मठ, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग सहित कितने ही नगरों का संबंध नाग से है।

9 नागों की पूजा से मिलता है पुण्य

इस दिन 9 नागों, अनंत नाग, बासुकि नाग, शेषनाग, पद्यनाभ नाग, कंबल नाग, शंखपाल नाग, धार्तराष्ट्र नाग, तक्षक नाग और कालिया की पूजा की जाती है। नौ नागों के नामों का जो सुबह शाम स्मरण करता है, उस पर सर्प विष का कोई प्रभाव नही पड़ता है। साथ ही हर क्षेत्र में उसे सफलता मिलती है।

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