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संसार की भक्ति नहीं कर रहा है वह

किसी भी भाव से श्यामसुन्दर में मन का अटैचमेन्ट हो जाय, माया मुक्त तो हो ही जायेगा, भगवद् धाम तो चला ही जायेगा और अनन्तकाल को ऐसा भी नहीं कि कुछ दिन के लिए।

अभी तक बहुत से लोग ये समझते हैं, मैं तो यह समझता हूँ नाइन्टी नाइन परसैन्ट लोग ये समझते होंगे हमारे विषय में कि सकाम भक्ति का मतलब होता है भगवान् से संसार माँगना। नहीं ये तो सकाम भक्ति नहीं है इसका नाम तो भक्ति है ही नहीं।

इसको तो भक्ति शब्द बोलो ही मत। इसमें तो जगत् भक्ति है। सकाम भक्ति उसे कहते हैं कि अपनी इन्द्रियों का विषय श्यामसुन्दर सम्बन्धी ही चाहना अपने सुख के लिए। प्रत्येक शब्द पर ध्यान दो। अपने सुख के लिए अपनी इन्द्रियों का समस्त विषय श्यामसुन्दर सम्बन्धी ही चाहे वह सकाम भक्त हैं, आँखें श्यामसुन्दर को ही देखेंगी, कान उन्हीं के शब्द सुनेंगे, नासिका उन्हीं की गन्ध लेगी, रसना उन्हीं का रसपान करेगी, त्वचा उन्हीं का स्पर्श चाहती है।

एक-एक रोम-रोम की कामना श्यामसुन्दर सम्बन्धी ही हो। अथात् माया के क्षेत्र में और कहीं न हो। स्वर्ग सम्राट इन्द्र भी हाथ जोडक़र खड़ा हो कि चलिए हम आपको आधा सिंहासन देते हैं अपना। ऊँह मुझे नहीं चाहिए आधा न पूरा।

तो अपनी इन्द्रियों की कामना अपने सुख के लिए श्यामसुन्दर सम्बन्धी तीन बातें रटे रहना, भूलना नहीं भगवत्प्राप्ति तक। अपनी इन्द्रियों की कामना न. 1, श्यामसुन्दर सम्बन्धी ही न. 2 और अपने सुख के लिए नं. 3। यह है सकाम भक्ति। संसार की भक्ति नहीं कर रहा है वह। एक बटे सौ सेकेण्ड को प्वाइन्ट वन परसेन्ट भी उसके मन का अटैचमेन्ट मोक्ष तक कहीं नहीं है। ऐस भक्त है सकाम भक्त।

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