माया वालों से माया माँगा यानी माया में अटैचमेन्ट
तो संसार का वैभव कितना हो अरे पचास की बात छोड़ों। भागवत तो आपने सुना होगा, चित्रकेतु के एक करोड़ स्त्रियाँ थीं। तमाम इतिहास भरा पड़ा है। स्त्री ही नहीं, धन पुत्र तमाम प्रकार के संसार के ऐश्वर्य हैं जो आपको आकृष्टï करते हैं।
उनकी बड़ी-बड़ी लिमिट भूत काल में लोगों के पास रह चुकी है और जब उनको होश आया तो उन्होंने डिक्लेयर किया अरे मेरा अनुभव है- समझे रहो, इधर मत आना डेन्जर है।
तो संसार से भी संसार माँगना मूर्खता और भगवान् से संसार माँगना तो घोर मूर्खता है। अब चलिये इन दोनों के आगे। प्रारम्भ इन दोनों के आगे होता है प्रेम जगत्।
ये तो मायिक जगत् का एरिया मैंने बताया है, माया वालों से माया माँगा यानी माया में अटैचमेन्ट है। भगवान् से माया माँगा यानी माया में अटैचमेन्ट है। ये तो माया की भक्ति करने वालों का दो हाल बताया मैंने। अब मायातीत की जो भक्ति करते हैं, उनमें भी तीन क्लास हैं- एक निष्काम भक्त, समर्था रति वाला और एक सकाम निष्काम मिक्श्चर समंजसा रति वाले, और एक सकाम भक्त साधारणी रति वाले।
ये तीनों महापुरुष हैं माया मुक्त हैं, क्योंकि ये सब श्रीकृष्ण से प्रेम करते हैं अपने मन का पूर्ण सरैन्डर, अपने मन का पूर्ण अटैचमेन्ट श्यामसुन्दर में इन लोगों ने किया है। तीन प्रकार से किया है। लोहे में पारस छू गया वह चाहे प्यार से छुआ हो, चाहे अचानक छू जाय, चाहे गुस्से में लड़ा दो। वह कैसे ही छू जाये।
कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहार्दमेव च।
नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते।।
(भाग. 10-29-15)