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मैं कहाँ पहुँचा था और कहाँ चला गया

शाप वगैरह जो। जान गये सौभरि कि ये चालाकी कर रहा है राजा। और ठीक कर रहा है बेचारा क्या करे? उन्होंने कहा ठीक है कल होगा ऐसा। और दूसरे दिन योग से उन्होंने अपना शरीर युवा कर लिया और परम सुन्दर बन करके आके बैठ गये सिंहासन पर।

अब जो लडक़ी गई सबने वर लिया यानी पचासों से ब्याह कर लिया उन्होंने। राजा को और फिकर हुआ कि ये पचास बहनों से ब्याह किया है एक लडक़े ने या ऋषि ने। लड़ाई होगी अब इनमें और क्या-क्या नाटक होगा, पता नहीं।

सौभरि ने ये भी जान लिया, राजा की शका को, तो उन्होंने पचास शरीर धारण कर लिया, उनके लिए पचास महल बनाये गये और फिर एक-एक लडक़ी के दस-दस लडक़े फिर उनके दस-दस लडक़े पौत्र प्रपौत्र सब हुए। हजारों वर्ष बीत गये। तब एक दिन अचानक उनहो होश आया उन्होंने कहा-

अहो इमं पश्यत मे विनाशम्

अरे मनुष्यो ! मेरा विनाश देखो। मैं कहाँ पहुँचा था और कहाँ चला गया। संसार के वैभव की कामना से सुख पाने की प्लानिंग करने वाले मनुष्यों होशियार हो जाओ- मैं सब भोग चुका हूँ मुझसे आगे तुम लोग नहीं जाओगे। तुम्हारे शरीर का क्या है? दस साल भी युवा नहीं रहता, बुढ़ापा आ जाता है।

मैं योग का शरीर धारण करके हजारों वर्ष तक ये पचास स्त्रियों में रत हूँ मुझे अनुभव है, मेरा सर्वनाश सब लोग देख लो और भविष्य में इस ओर मत जाना।

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