‘जानकी नवमी’ मनाने की उठने लगी मांग
पटना | केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा द्वारा राज्यसभा में सीता की जन्मभूमि ‘सीतामढ़ी’ के बारे में बयान दिए जाने के बाद ‘वैदेही’ की जन्मभूमि को लेकर जहां बहस शुरू हो गई है, वहीं मां सीता के जन्मोत्सव ‘जानकी नवमी’ को भगवान राम के जन्मोत्सव ‘रामनवमी’ की तरह धूमधाम से मनाने की मांग उठने लगी है। कई संगठनों द्वारा जन जागरण अभियान भी चलाया जा रहा है। मां सीता की जन्मभूमि सीतामढ़ी को लेकर कई अभियान चला रहे ‘जानकी सेना’ के प्रमुख मृत्युंजय झा कहते हैं कि इस वर्ष जानकी नवमी (4 मई) को कई आयोजन किए जा रहे हैं। पिछले चार महीने से जानकी नवमी को लेकर जन जागरण अभियान के तहत रथयात्रा और पदयात्रा कर चुके झा कहते हैं कि इस वर्ष जानकी नवमी को लेकर झांकी निकाली जा रही है।
उन्होंने कहा कि जब मिथिला के ‘दामाद’ की जय-जयकार होगी, तो ‘बेटी’ की भी जय-जयकार होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक मां जानकी का रथ अयोध्या नहीं पहुंचेगा, तब तक वहां भव्य राम मंदिर का निर्माण असंभव है।
मृत्युंजय झा ने कहा कि सीता की जन्मस्थली सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में भी जानकी नवमी को लेकर कई तरह के आयोजन हो रहे हैं।
इधर, भाजपा के सांसद प्रभात झा का मानना है कि अभी तक तो सीता मां की जन्मस्थली को लेकर ही लोगों में एक मत नहीं है। उन्होंने हालांकि सीतामढ़ी को ही मां सीता की जन्मभूमि बताते हुए कहा कि अब सीतामढ़ी को ‘संस्कारधानी’ बनाने की जरूरत है।
उन्होंने बताया, “सीतामढ़ी को ‘संस्कारधानी’ बनाने और इस पावन भूमि की विशेषता बताने को लेकर अब तक मैंने 6000 लोगों को पोस्टकार्ड लिख चुका हूं।”
मिथिला की महादेवी वर्मा मानी जाने वाली प्रसिद्ध लेखिका डॉ़ शेफालिका वर्मा का मानना है कि पुरुष प्रधान समाज में प्रारंभ से ही नारी को दोयम दर्जे के रूप में देखा गया है। मां सीता भी नारी थीं। यही काराण है कि आज लोग रामनवमी धूमधाम से मनाते हैं, जबकि जानकी नवमी की जानकारी बहुत कम लोगों को है।
उन्होंने कहा, “रामायण में राम के चरित्र को उभार दिया गया है, उनकी पहचान मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में की गई है, जबकि सीता के त्याग को कम महत्व दिया गया है। सीता को भी अगर बराबर महत्व दिया गया होता, तो आज उनकी पहचान भी नारी शिरोमणि की होती।”
उन्होंने हालांकि संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि आज की ‘सीताओं’ के कारण शक्ति को पहचान मिलने लगी है। उनका मानना है, “शक्ति की पूजा बिना पुरुष भी संपूर्ण नहीं है। इस कारण रामनवमी की तरह जानकी नवमी को लेकर भी उत्साह होना चाहिए और उसी भव्य तरीके से इसे भी मनाया जाना चाहिए।”
इधर, मिथिलालोक फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ़ बीरबल झा कहते हैं, “आम तौर पर हम राधा-कृष्ण और सीता-राम बोलते हैं, लेकिन जब व्यावहारिकता की बात आती है, तो हम इस पुरुष प्रधान समाज में नारी (सीता व राधा) को भूल जाते हैं।”
वह कहते हैं, “राम जन्मोत्सव की तरह सीता जन्मोत्सव का भव्य आयोजन किया जाना चाहिए, तभी समाज में भी नारी का सम्मान बढ़ेगा।”
उन्होंने इतिहासकारों पर तंज कसते हुए कहा, “जहां से सीता का हरण किया गया, उस पंचवटी की प्रसिद्धि तो देश-दुनिया में है, लेकिन सीता की जन्मस्थली सीतामढ़ी को बहुत कम लोग जानते हैं।”
डॉ़ झा ने कहा कि रामायण की शुरुआत ही सीता से होती है और अंत भी सीता से ही होती है। सीता के बिना राम की कल्पना ही नहीं की जा सकती।”
जानकी नवमी का आयोजन और सीतामढ़ी को विकसित करने को लेकर जनजागरण अभियान चलाए जाने की वकालत करते हुए झा कहते हैं कि राम मंदिर की तरह सीतामढ़ी के पुनौरा धाम (मां सीता की जन्मस्थली) पर भी भव्य मंदिर का निर्माण आवश्यक है, तभी देश में रामराज की कल्पना की जा सकती है।