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बस्तर में काजू के पेड़ों पर कुल्हाड़ी का कहर

जगदलपुर । छत्तीसगढ़ के बस्तर में 1,789 हेक्टेयर में रोपे गए काजू के पेड़ तेजी से कम हो रहे हैं। पता चला है कि इसके पीछे कम फल देने को मुख्य कारण माना जा रहा है। इस संबध में बोरपदर, बेड़ा उमरगांव के ग्रामीणों का कहना है कि पुराने पेड़ों में पैदावार कम हो गई है। इसलिए लोग जलाऊ के लिए पुराने पेड़ काट रहे हैं। इसके चलते काजू जंगल के सैकड़ों पेड़ कट चुके हैं।
बकावंड के वन रेंजर, सुषमा नेताम ने कहा, “ग्रामीणों को समझाया जा रहा है कि जब तक नए पेड़ फल देने लायक न हो जाएं, पुराने पेड़ों को नुकसान न पहुंचाएं।” उन्होंने कहा, “काजू प्लाट की खाली जगह में नए पौधे रोप कर काजू जंगलों को फिर से आबाद करने की कोशिश हो रही है। जबकि श्रमदान से रोपे गए इन पौधों को बचाने के लिए वन सुरक्षा समिति, स्वयं सहायता समूहों की मदद ली जा रही है।”
जानकारों का मानना है कि जब काजू के पेड़ पुराने हो जाते हैं तो उनके फल देने की क्षमता कम हो जाती है। इसके चलते बकावंड, चित्रकोट ब्लॉक में काजू के जंगल सिमटने लगे हैं। पिछले 40 साल में बस्तर में काजू रोपण हो रहा है। पिछले 15 साल में ही यहां के छह वन परिक्षेत्र में 10 लाख 19 हजार काजू के पौधे 1789 हेक्टेयर में रोपे गए, ताकि यहां के 2948 हितग्राहियों को काजू गिरी बेचने से फायदा हो सके। लेकिन बीते तीन साल से चित्रकोट और बकावंड रेंज में काजू वृक्षों की संख्या तेजी से घटी है।

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