खादी संस्थाओं पर जबरन खादी मार्क थोपने का विरोध
नई दिल्ली | खादी समिति ने खादी संस्थाओं पर जबरन खादी मार्क थोपने का विरोध किया है। समिति की ओर से यहां बुधवार को जारी एक बयान में कहा गया है कि इससे खादी आम लोगों की पहुंच से दूर होगी, और इससे जुड़े कत्तिन-बुनकरों का रोजगार घटेगा। खादी समिति के संयोजक अशोक शरण ने बयान में कहा है, “देश भर की खादी संस्थाओं और खादी समिति, सर्व सेवा संघ, खादी मिशन ने खादी आयोग और सरकार के खादी मार्क के नाम से एक और नया कानून बनाने का विरोध किया था, जिसे संस्थाओं पर आवश्यक रूप से लागू किया जाना था। इस अधिनियम के लागू होने से ग्रामीण कारीगरों को रोजगार देने और ग्राहकों को सस्ती खादी उपलब्ध कराने का कार्य मंद पड़ जाएगा, और दलालों और निजी लोगों को मदद मिलेगी तथा नकली खादी बिकने की संभावना बढ़ जाएगी। इतना ही नहीं इस अधिनियम से उन खादी संस्थाओं को और परेशान किया जाएगा, जो खादी आयोग की गलत बातों का विरोध करते हैं।”
शरण ने कहा, “खादी की गुणवत्ता, उत्पादकता और मूल्यों को निर्धारित करने के लिए पहले से ही महात्मा गांधी द्वारा स्थापित पड़ता चार्ट और प्रमाणीकरण की व्यवस्था मौजूद है। गांधी जी की शहादत के बाद यह कार्य सर्व सेवा संघ के पास था और 1956 में खादी ग्रामोद्योग आयोग के गठन के बाद यह कार्य उसके पास चला गया। आयोग ने भी इसमें कोई बदलाव नहीं किया। खादी प्रमाणीकरण और पड़ता चार्ट की पद्धति को वर्ष 2013 में खादी मार्क अधिनियम बना कर कमजोर कर दिया गया, जिससे खादी संस्थाओं को परेशानी होने लगी।”
उन्होंने कहा, “बाजार में उपलब्ध सिल्क मार्क, वूल मार्क, हैंडलूम मार्क यहां तक कि सोने में प्रयोग होने वाला होलोग्राम भी स्वैच्छिक है। इनका उपयोग कोई भी निर्धारित फीस देकर कर सकता है। परन्तु खादी मार्क जबरदस्ती का मार्क है, जिससे खादी संस्थाओं को परेशानी है।” शरण ने कहा, “खादी ग्रामोद्योग आयोग ने खादी मार्क की फीस प्रति पांच वर्ष संस्थाओं के लिए 10 हजार रुपए, व्यक्तिगत पचीस हजार रुपए तथा कंपनियों के लिए पांच लाख रुपए रख दिए। फैब इंडिया इसी वर्ग में आता है, जहां उन्हें खादी मार्क लेने के लिए पांच लाख रुपये केवीआईसी को देने होंगे।”
शरण ने कहा, “फैब इंडिया जैसे सैकड़ों खादी बिक्री केंद्र पूरे देश में प्राइवेट लोगों द्वारा चलाए जा रहे हैं। इनकी बिक्री भी आयोग के बिक्री केंद्रों से लगभग पांच गुना अधिक है, परन्तु आयोग इन पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। इसके लिए एक समानता की नीति होनी चाहिए, जो खादी मार्क अधिनियम 2013 में संभव नहीं है। इसके लिए खादी ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम 1956 पर्याप्त है, जिसमे खादी की स्पष्ट परिभाषा, उत्पादन, विपणन आदि की विधि दी गई है।” बयान में छतीसगढ़ खादी ग्रामोद्योग फेडरेशन के सचिव मोहम्मद बी. डी. सिद्दकी ने कहा, “खादी संस्थाओं की मांग है कि खादी मार्क अधिनियम को समाप्त किया जाए या स्वैच्छिक किया जाए और इसके बदले पुरानी पद्धति लागू की जाए।”