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पर्यावरण प्रेमी ने ‘मुरुम की पहाड़ी’ हरियाली में बदली 

Teak-Farming

ग्वालियर | ग्वालियर की एक पहाड़ी ‘मुरुम की पहाड़ी’ कहलाती थी, मगर पर्यावरण प्रेमी विजयराम राठौर की कोशिश ने महज कुछ वर्षो में इसे हरा-भरा कर दिया है। 10 हजार से ज्यादा पेड़ों के चलते यह पहाड़ी अब जंगल का हिस्सा नजर आने लगी है। ग्वालियर-झांसी रेल लाइन के पास स्थित है महलगांव की पहाड़ी। कभी इस पहाड़ी पर करील और बबूल के इक्का-दुक्का पेड़ हुआ करते थे, मगर आज की तस्वीर बदली हुई है, यहां नीम, सागौन, पलाश, महुआ, कचनार, बांस जैसे वृक्ष तो हैं ही साथ में अमरुद, नींबू, कटहल, बेर, आडू, करोंदा, बेलपत्र जैसे फलदार और सौंजना, आंवला जैसे औषधीय पौधे भी आसानी से नजर आते हैं।
स्थानीय लोग बताते हैं कि वीरान पड़ी इस पहाड़ी को बसाने के प्रयास लगभग 20-25 वर्षो पूर्व ही शुरू हो गए थे। जिला प्रशासन ने इस पहाड़ी को कर्मचारी आवास सोसायटी को मकान बनाने के लिए आवंटित कर दिया था, मगर बसने कोई नहीं आया। बीते एक दशक में सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी विजय राम राठौर ने अपनी कोशिशों के बल पर पहाड़ी की सूरत ही बदल दी।
पहाड़ी का जायजा लेने पहुंचे अफसरों को राठौर ने बताया, “उन्होंने महलगांव पहाड़ी पर एक छोटा भू-खंड ले रखा था। नौकरी के बाद मकान बनाने आए तो बंजर पहाड़ी को देखकर उनका मन बहुत व्यथित हुआ। उन्होंने बिना किसी की मदद और सहयोग से अपने घर के सामने वाले हिस्से में नीम व आंवले के दो-दो पेड़ रोपे। पहाड़ी के नीचे से पानी लाकर उन्हें सींचना शुरू किया।”
उन्होंने कहा, “बरसात के मौसम में पहाड़ी पर छोटी-छोटी ट्रेंच (गड्ढ़े) बनाकर पानी रोकने और उसके आस-पास पौधे लगाना शुरू किया। धीरे-धीरे पहाड़ी पर सेवानिवृत्त अधिकारी-कर्मचारियों ने मकान बनाना भी प्रारंभ कर दिया। दो-तीन वर्षो में ही मेहनत रंग लाने लगी। कलोनी के अन्य लोग भी इससे प्रेरित होने लगे। सब ने मिलकर पर्यावरण मित्र संघ का गठन किया।”
राठौर बताते हैं, “प्रशासनिक अमले और नगर निगम महापौर विवेक नारायण शेजवलकर द्वारा पहाड़ी पर 10 बीघा क्षेत्र में तार फेंसिंग कराकर पौधों की रक्षा और काम करने के लिए सुरक्षित वातावरण प्रदान किया गया। पहाड़ी पर बंद पड़े बोरवेल से पानी की आपूर्ति प्रारंभ हो गई। पहाड़ी पर एक तालाब भी बन गया है। जो पेड़- पौधों के साथ वन्य जीव और पक्षियों का सहारा भी बना है।”
वर्तमान में हाल यह है कि कभी वीरान नजर आने वाली इस पहाड़ी पर विभिन्न प्रजातियों के लगभग 10 हजार पेड़ लहलहाने लगे हैं। अब इसे रमणीक स्थल के रूप में विकसित करने का प्रयास शुरू कर दिया गया है, जिससे ग्वालियर शहरवासी बड़ी संख्या में मॉर्निग और ईवनिंग वाक के लिए आएं।
राठौर के इस अभियान में उनका 11 वर्षीय नाती विनय भी मदगार है, वह भी अपने प्रत्येक जन्मदिन पर उतने ही पेड़ लगाता है जो उसकी वर्षगांठ होती है। वह नियमित पेड़ों की सिंचाई करता है और पक्षियों को दाना डालता है।

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