मुजफ्फरनगर में माहौल बिगड़ने की आशंका से भयभीत लोग
मुजफ्फरनगर | मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों की तपिश अभी भी मौजूद है, जिसमें 60 से अधिक लोग मारे गए थे। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल का केंद्र बन चुका है, लेकिन मुजफ्फरनगर के लोगों को डर है कि 11 फरवरी को होने वाले मतदान से पहले कुछ अराजक तत्व निहित स्वार्थो के चलते फिर से माहौल बिगाड़ सकते हैं। ऊर्दू में स्नातक 30 वर्षीय फैजल जमीर क्षेत्र की परिस्थितियों को बयां करने के लिए प्रख्यात शायर राहत इंदौरी को उद्धृत करते हैं, “सरहदों पर तनाव है क्या, कुछ पता करो चुनाव है क्या”
मुजफ्फरनगर दंगों के चलते 50,000 से अधिक की आबादी को विस्थापित होना पड़ा। मुजफ्फरनगर में पहले चरण के अंतर्गत मतदान होने हैं। आजीविका के लिए पढ़ाई बीच में छोड़ने को बाध्य जमीर अपने भय को व्यक्त करते हैं, “हम उन दंगों को कभी नहीं भूल सकते। उसके लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) दोनों ही जिम्मेदार हैं। ये राजनीतिक दल हैं और राजनीतिक लाभ के लिए कुछ भी कर सकते हैं।”
हाफिज अब्दुल कद्दूस अगस्त की उस काली रात को याद करते हैं, जब भीड़ ने मुजफ्फरनगर के खतौली में बुनकरों के एक कारखाने में आग लगा थी और उनके साथियों की हत्या कर दी थी। अब दिहाड़ी मजदूरी करने वाले कद्दूस ने आईएएनएस से कहा, “काम की तलाश में मैंने खतौली छोड़ दी। लेकिन जब मुझे काम नहीं मिला तो मैंने दिहाड़ी मजदूरी शुरू कर दी। दंगों ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी।”
लेकिन ऐसा लगता है कि इन दंगों ने इलाके के मुस्लिमों को एक कर दिया है। उनमें से अधिकांश लोगों ने कहा कि भाजपा को रोकने के लिए उनके पास सबसे अच्छा विकल्प अखिलेश यादव ही हैं।
मुजफ्फरनगर के खालापार इलाके में सुबह 8.0 बजे के करीब कुछ मुस्लिम युवा आपस में बातें कर रहे हैं। उनमें से एक मोहम्मद शौकत ने कहा, “अखिलेश ने ढेरों विकास कार्य किए हैं। वह भेदभाव नहीं करते। लोग उन्हीं को वोट देंगे। कांग्रेस से गठबंधन करने का सपा को फायदा मिलेगा।” आस-पास खड़े युवक उनका समर्थन करते हैं।
एक अन्य युवा 35 वर्षीय रशीद का कहना है, “भाजपा खराब नहीं है, लेकिन उनकी कथनी और करनी में अंतर है। वे कहते तो हैं ‘सबका साथ-सबका विकास’ लेकिन वास्तविकता अलग है। कुछ भाजपा नेता जैसे संजीव बालियान और संगीत सोम अंटशंट बयान देते रहते हैं, लेकिन पार्टी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती।” सपा ने पूर्व मंत्री चितरंजन स्वरूप के बेटे गौरव स्वरूप को मुजफ्फरनगर सदर से अपना प्रत्याशी बनाया है। स्वरूप पिछले वर्ष उप-चुनाव में भाजपा प्रत्याशी कपिल देव अगरवाल से हार गए थे।
चितरंजन स्वरूप का देहांत हो जाने के कारण उप-चुनाव कराना पड़ा था। भाजपा ने इस बार फिर अगरवाल को ही टिकट दिया है। उप-चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था, जिसके चलते दलित वोट अगरवाल की ओर चले गए थे। अगरवाल और स्वरूप के अलावा इस सीट पर 14 और उम्मीदवार खड़े हैं, जिनमें बसपा के राकेश शर्मा और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) की पायल महास्वात्री शामिल हैं। संयोग से सपा, भाजपा और रालोद तीनों ही दलों के उम्मीदवार बनिया समुदाय से हैं, जबकि बसपा उम्मीदवार ब्राह्मण है। महबूबनगर के 60 वर्षीय मोहम्मद शमशाद खान कहते हैं, “मुजफ्फरनगर के मुस्लिमों में मतभेद है। शिया बसपा के पक्ष में मतदान करेंगे और सुन्नी सपा के पक्ष में। लेकिन खालापुर में पड़ने वाले वोट निर्णायक होंगे।”
बसपा यहां से कभी नहीं जीती है, लेकिन बीते पांच बार से उसे 20 से 30 फीसदी मत मिलते आए हैं। यहां से भाजपा 1993, 1996 और 2007 में जीती, जबकि सपा को 2002 और 2012 में जीत मिली।
इस विधानसभा क्षेत्र में तीन लाख के करीब मतदाता हैं, जिसमें 40 फीसदी मुस्लिम वोट हैं। मुस्लिमों की ही तरह इलाके के हिंदू भी जाति और स्थानीयता के आधार पर बंटे हुए हैं।
मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन के पास दुकान चलाने वाले विनोद त्यागी का कहना है, “भाजपा इस बार मजबूत है। हिंदुओं के लिए यह एकमात्र विकल्प है।” एक अन्य दुकानदार नवनीत गुप्ता हालांकि विनोद को काटते हुए कहते हैं कि हिंदू भी सपा प्रत्याशी को वोट देंगे, क्योंकि उनके पिता ने दोनों समुदायों के लिए काम किया है।
नवनीत गुप्ता केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले की भी निंदा करते हैं। उन्होंने कहा, “इस फैसले से सरकार ने क्या हासिल किया? इससे सिर्फ असुविधा पनपी। हमारा कारोबार ठप पड़ गया। इससे पहले मैं हर रोज दो-तीन साइकिलें बेच लेता था, लेकिन पिछले दो महीने के दौरान सिर्फ दर्जन भर साइकिलें बिक सकी हैं।” वहीं कपड़ों की दुकान चलाने वाले 38 वर्षीय रवि कक्कड़ का कहना है, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि नोटबंदी से हमारा कारोबार खराब हुआ है, लेकिन मैं इसके लिए तैयार था। मुझे पता था कि कारोबार गिरेगा, लेकिन देशहित में मैंने किसी तरह काम चलाया।”
प्रेमपुरी इलाके में रहने वाले सफाईकर्मी नरेश बाल्मीकि ने बताया कि उप-चुनाव में उनके समुदाय ने भाजपा को वोट दिया, लेकिन इस बार वे मायावती के पक्ष में मतदान करेंगे। नरेश ने कहा, “अगर दंगों के दौरान मायावती मुख्यमंत्री होतीं, तो स्थिति इतनी खराब नहीं हो पाती। वह काबिल नेता हैं।”
वहीं नरेश इस बात से भी इनकार करते हैं कि अधिकांश मुस्लिम बसपा के पक्ष में मतदान करने वाले हैं। इलाके का जाट समुदाय भी भाजपा और रालोद के बीच बंटा हुआ है।