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हिन्दुस्तान में लोगों को ‘सामाजिक न्याय के लिए अंग्रेजी ज्ञान जरूरी’

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नई दिल्ली | सामाजिक न्याय के लिए आज अंग्रेजी भाषा का ज्ञान निहायत जरूरी हो गया है और इसका लाभ समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों को भी मिलना चाहिए, ताकि उनका जीवन बदल सके। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को अगर अंग्रेजी नहीं आती तो आज हम उन्हें जिस रूप में जानते हैं शायद नहीं जान पाते। यह कहना है कि ब्रिटिश लिंग्वा के प्रबंध निदेशक डॉ. बीरबल झा का। ‘अंग्रेजी और सामाजिक न्याय’ विषय पर सेमिनार आयोजन के क्रम में शनिवार को बुलाए गए संवाददाता सम्मलेन में डॉ. झा ने कहा कि अंग्रेजी को कौशल विकास में शामिल कर भारत दुनिया में अपना परचम लहरा सकता है। आज अंग्रेजी को सामाजिक न्याय के एक उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को अगर अंग्रेजी नहीं आती तो आज हम उन्हें जिस रूप में जानते हैं शायद नहीं जान पाते।”  डॉ. झा ने कहा कि अब अंग्रेजी ‘स्टेटस सिम्बल’ से बाहर निकलकर रोजगार के अवसर की भाषा बन गई है, जिसे ‘लाइफ स्किल’ भाषा कहा जा रहा है। ऐसे में यह जरूरी है कि इसका लाभ समाज के सभी वर्गो के लोगों को मिलना चाहिए।  उन्होंने कहा कि एक सर्वेक्षण के अनुसार 98 प्रतिशत इंजीनियरिंग ग्रेजुएट केवल अंग्रेजी न बोल पाने के कारण बेहतर रोजगार के अवसर से वंचित हो जाते हैं।
डॉ. झा ने कहा कि आज जब हम ‘डिजिटल भारत’ की बात करते हैं तब यह जरूरी हो जाता है कि ‘अंग्रेजी लिटरेसी’ को एक जन आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाया जाए, ताकि सूचना प्रौद्योगिकी के विभिन्न साधनों का लाभ सभी लोग उठा सकें। उन्होंने कहा कि आज देश में ‘डिजिटल डिवाइड’ की तरह एक ‘लैंग्वेज डिवाइड’ की स्थिति भी मौजूद है। इस बात से शायद ही कोई इनकार करे कि देश केवल सामाजिक-आर्थिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि भाषा के स्तर पर भी ‘इंडिया’ और ‘भारत’ में विभाजित है।
ब्रिटिश लिंग्वा के एमडी ने कहा कि चूंकि सामाजिक न्याय का उद्देश्य मानवीय समानता को स्थापित करके समान अवसर की उपलब्धता पर बल देना है, इसलिए भारत में अंग्रेजी को सामाजिक न्याय के साथ जोड़कर देखा जाए, ताकि देश में मौजूदा सामाजिक-आर्थिक असमानता को कम किया जा सके।

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