खुल गया सच : सूर्यास्त के बाद आखिर क्यों नहीं जलाई जाती हैं लाशें
हर धर्म की मृत्यु को लेक्र अपनी अलग अलग रस्में एवं रीति रिवाज़ होते हैं। एक हिंदी कहावत के अनुसार “जीना झूठ है और मरना सत्य है”। ऐसे में हम मनुष्य साड़ी जिंदगी माया के भोग विलास में खोए रहते हैं और यह भूल जाते हैं कि यह मोह माया हमारे किसी काम की नहीं है और एक दिन सब कुछ छोड़ कर हमने मर जाना है। यहाँ तक कि मरने के बाद हम अपना शरीर भी अपने साथ नहीं ले जा सकते। केवल हमारी आत्मा ही मरती है, इसलिए मरने के बाद शरीर को नष्ट कर दिया जाता है।
मरने के बाद क्रियाकर्म की हर देश में अलग अलग परम्पराएं हैं। जहाँ हिन्दू और सिख धर्म में मृत व्यक्ति के शरीर को जला दिया जाता है, वही दूसरी और मुस्लिम और ईसाई धर्म में मृत व्यक्ति को कबर में डाल कर ज़मीन में दफना दिया जाता है।
हिंदू धर्म के शास्त्रों की मानें तो इंसान के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक 16 संस्कार माने जाते हैं, जिसमें से पहला संस्कार उसके जन्म का और 16वां यानी अंतिम संस्कार उसकी मौत के लिए माना जाता है, जिसको लोग पूरे विधि-विधान से संपन्न करते हैं।
इस संस्कार में लोग व्यक्ति की मौत के बाद कई प्रकार की रस्में निभाते हैं। मरने के बाद व्यक्ति को नहला कर नए कपड़े पहनाए जाते हैं और भी बहुत सी रस्में की जाती हैं। इसके बाद लाश को श्मशान घाट ले जाकर उसको जला दिया जाता है। लाश को जलाने का काम मरे हुए इंसान का बेटा, पति या पिता ही कर सकता है।
हिंदू धर्म के गरुण पुराण में लिखा है कि अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसे सूर्यास्त के बाद नहीं जलाया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो मरने वाले इंसान की आत्मा को कभी शांति नहीं मिलती। भले ही वह अंतिम संस्कार कितनी भी विधि-विधान से क्यों ना किया गया हो, मृतक की आत्मा को कभी भी मुक्ति नहीं मिल पाती।
ऐसी मान्यता है कि सूर्यास्त के बाद अगर किसी व्यक्ति को जला दिया जाए तो वह परलोक में जाकर भी बहुत सारे कष्ट भोगता है और अगर उसका पुनर्जन्म हो जाए तो उसका कोई ना कोई अंग खराब होता है।