जाने क्यों गणगौर पूजा होती है महिलाओं के लिए खास, क्या है इसका महत्व और पूजा विधि
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला गणगौर तीज उत्सव आज से मनाया जा रहा है। गणगौर पूजा भारत के प्रमुख त्योंहारों में से एक है यह पर्व पूरी भक्ति और श्रृध्दा के साथ मनाया जाता है ।होली के दूसरे दिन से शुरू ये पर्व पूरे सोलह दिनों तक मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से माता पार्वती व भगवान शंकर की पूजा की जाती है। गणगौर राजस्थान के प्रमुख पर्व है, जिसे पूरी श्रद्धा एवं परंपरा के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि कुंवारी कन्याएं अच्छे वर और विवाहित महिलाएं सुहाग की रक्षा के लिए पूजा करती हैं। यह त्योहार 16 दिनों का होता है। जहां लड़कियां होली में शादी के बाद मायके आकर इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाकर अपने सुहाग की मंगलकामना करती हैं। अतः सुहागिनें भी उन्हीं के साथ प्रमुख पूजा में सहयोग कर अपने परिवार और पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।इस दिन कन्या और विवाहित स्त्रियां मिट्टी से गौर बनाकर उनको सुंदर पोषाक पहनाकर श्रृंगार करती हैं और खुद भी सजती संवरती हैं। महिलाएं सोलह श्रृंगार, खनकती पायल, चूड़ियों के साथ बंधेज की साड़ी में नज़र आती हैं।इस त्योहार में सोलह अंक का विशेष महत्व होता है।गणगौर के गीत गाते हुए महिलाएं काजल, रोली, मेंहदी से 16 -16 बिंदिया लगाती
हैं। गणगौर को चढ़ने वाले प्रसाद ,फल व सुहाग की सामग्री 16 के अंक में ही चढ़ाई जाती है।गणगौर का त्योहार घेवर और मीठे गुनों के बिना अधूरा माना जाता है खीर,चूरमा,पूरी,मठरी से गणगौर की पूजा की जाती है।
आटे और बेसन के घेवर बनाएं जाते है फिर गणगौर माता को चढ़ाए जाते है। इस पूजा का स्थान किसी एक स्थान पर ही किया जाता
है।गणगौर पूजा में गाए जाने वाले लोक गीत इस पूजा की आत्मा माने जाते हैंं।