यह घाट मरने के बाद भी वसूल लेता है बड़ी कीमत
बनारस के हरीशचंद्र घाट पर मरने के बाद भी अंतिम संस्कार के लिए चुकानी पड़ती है कीमत
हिंदू शास्त्रों की माने तो इस धरती पर जिसने जन्म लिया है, उसे एक न एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाना है। जन्म के समय बहुत से रीति-रिवाज अपनाए जाते हैं, लेकिन किसी के मरने के बाद भी कुछ रीति-रिवाज़ अपनाएं जाते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार मृत शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है।
ज्यादातर शवों का अंतिम संस्कार नदी के किनारे किया जाता है, लेकिन अगर इसे गंगा नदी के किनारे किया जाए तो मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे घाट के बारे में बताने जा रहे हैं जहां मुर्दों से भी टैक्स की वसूली की जाती है।
यह घाट बनारस में है जहां मुर्दों के अंतिम संस्कार के लिए कीमत चुकानी पड़ती है। यह घाट बनारस में है और ये घाट दुनिया का इकलौता ऐसा घाट है जहां पर हमेशा चिता जलती रहती है, कभी ठंडी नहीं होती। इस घाट का नाम हरिशचंद्र घाट है, जिसकी परंपरा करीब 3000 साल पुरानी है।
टैक्स वसूलने की परंपरा राजा हरीशचंद्र के जमाने से है, जिसकी रख रखाव डोम जाति के लोगों का था। हरीशचंद्र ने एक वचन के तहत अपना राजपाट छोड़ कर डोम परिवार के पूर्वज कल्लू डोम की नौकरी की थी। इसी बीच उनके बेटे की मौत हो गई और बेटे के दाह संस्कार के लिए उन्हें मजबूरन कल्लू डोम की इजाजत मांगनी पड़ी।
बिना दान दिए तब भी अंतिम संस्कार की इजाज़त नहीं थी, इसलिए राजा हरीशचंद्र को अपनी पत्नी की साड़ी का एक टुकड़ा दक्षिणा के तौर पर कल्लू डोम को देना पड़ा। उसी के बाद से शवदाह के बदले टैक्स मांगने की परंपरा शुरु हो गई और जो की आज तक निभाई जा रही है।