IANS

संयुक्त राष्ट्र को ‘दिवस’ घोषित करने की नीति बदलने की जरूरत : राजेंद्र

बुंदेलखंड (उत्तर प्रदेश), 6 अप्रैल (आईएएनएस)| पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र हर समस्या का समाधान ‘दिवस उत्सव’ मनाने में देखता है। आठ मार्च महिला दिवस, 22 मार्च विश्व जल दिवस, 22 अप्रैल पृथ्वी दिवस, पांच जून पर्यावरण दिवस, और अब तो हर दिन कोई न कोई दिवस है। दो अक्टूबर अहिंसा दिवस, जबकि हिंसा अब सभी जगह दिखाई देती है।

उन्होंने कहा कि आज जल संकट किसी हिंसा से कम नहीं है। पूरी दुनिया में जल संकट एक नए तरह की हिंसा है। इसके समाधान हेतु हिंसा के मूल कारण जानें और उसके समाधान के उपाय सुझाएं। कुछ मॉडल की तरह संयुक्त राष्ट्र स्वयं भी करके दिखाए। सीरिया की हिंसा अब तो राजनैतिक बन गई, लेकिन इसका मूल कारण तो जल संकट है। जल की कमी से वहां के लोग उजड़े और बेघर हुए। अब इस देश को जल उपलब्ध कराने में इनकी कोई मदद नहीं करता।

जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा, जल दिवस पर बड़ी-बड़ी मीटिंग, ईटिंग, चीटिंग होती है, लेकिन बेपानी को जीने-पीने का पानी मिले। उसे पानी पिलाने वाली कार्य योजना नहीं बनी है। विश्व जल दिवस पर किसी छोटे देश, राज्य, जिले, गांव को बाढ़-सुखाड़ मुक्त बनाकर पेयजल उपलब्ध कराने का उत्सव मनाया जाए तो वह असली जल दिवस होगा। केवल जल नारे, कविताएं, जल-पाठ, जल-गीत, जल-नाटकों से जल दिवस मनाने की इतिश्री हो जाती है। ऐसा दिवस मनाने से काम नहीं चलेगा।

उन्होंने कहा, सामुदायिक जल संरक्षण व जल उपयोग दक्षता बढ़ाने का काम शुरू करना चाहिए। जल संकट को भुलाना है, सारी दुनिया में बाढ़-सुखाड़ का संकट बढ़ रहा है। इसके कारण गांवों, शहरों-देशों का उजाड़ जारी है। इस उजाड़ को रोकने की प्रक्रिया का शुभारम्भ जल दिवस बनना चाहिए। इसी प्रकार पृथ्वी दिवस भी मनाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को दिवस घोषित करने की नीति-रीति को बदलने की जरूरत है। आज तो दिवस घोषणाएं केवल आरती उत्सव जैसी ही हैं। यह भगवान को खुश करने या उन्हें रिश्वत देने जैसा है। ऐसा ही आज कल संयुक्त राष्ट्र संघ भी अपने सभी राष्ट्रों को लुभाने हेतु दिवसों को मनाने की रिश्वत देता रहता है।

राजेंद्र ने कहा, हमारा प्रत्येक दिवस कुछ न कुछ प्रसाद रूप में नाम लेकर मनाया जाता है। दिवस के पीछे-पीछे सच्चे लक्ष्य को राष्ट्र भी भूल जाते हैं और संयुक्त राष्ट्र भी भूल जाता है। अत: दिवस मनाना आरती उत्सव नहीं बनना चाहिए। लक्ष्य प्राप्ति का सच्चा रास्ता ही बनाया जाए। उसी को सफल सिद्ध करने हेतु दिवस मनाना चाहिए।

राजेंद्र आगे कहा, मैं वर्ष 2015 अक्टूबर से संयुक्त राष्ट्र संघ को बराबर लिख रहा हूं। सीरिया देश के लोग बेपानी होकर उजड़े हैं। इस देश पर अब अमेरिका, रूस और ईरान तीनों की सेनाएं लड़ रही हैं। लेकिन यहां इनकी नदी इफरिथिस का पानी इन्हें मिले, उसकी बात कोई नहीं कर रहा है।

उन्होंने कहा, सीरिया की नदी को संपूर्ण जल-प्रवाह मिले तो यहां पुनर्वास आरंभ होगा। फिर इस देश में दो अक्टूबर अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस को उत्सव की तरह योजनाबद्ध काम करने के संकल्प रूप में मनाना सार्थक होगा। वहीं सच्चा अहिंसा दिवस सिद्ध हो सकेगा।

राजेंद्र ने आगे कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ को दिवस मनाने का काम जारी रखना है, लेकिन लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ने के रास्तों के साथ ही मनाना अच्छा होगा।

Show More

Related Articles

Back to top button
Close
Close