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क्‍या है SC/ST Act, सुप्रीम कोर्ट के किस फैसले के खिलाफ हो रहा बवाल

सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी एक्ट पर दिए गए फैसले के खिलाफ आज दलित संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया है। केंद्र ने भी इस मसले पर कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दर्ज की है। बंद के कारण पंजाब में सीबीएसई की 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं टाल दी गई हैं। अब सवाल ये उठता है कि आखिर एससी-एसटी ऐक्ट पर इतना बवाल क्‍यों मचा हुआ है, चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से…

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, (The Scheduled Castes and Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989) को 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद की ओर से पारित किया था। इसे 30 जनवरी 1990 से सारे भारत
(जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया है। यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता है, जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं। वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम में 5 अध्याय और 23 धाराएं हैं।

यह अनुसूचित जातियों और जनजातियों में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों को दंडित करता है। यह पीड़ितों को विशेष सुरक्षा और अधिकार देता है। इसके लिए विशेष अदालतों की भी व्यवस्था होती है।

अपराध अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के विरुद्ध होने वाले क्रूर और अपमानजनक अपराध, जैसे उन्हें जबरन अखाद्य पदार्थ (मल, मूत्र आदि ) खिलाना या उनका सामाजिक बहिष्कार करना, को इस क़ानून के तहत अपराध माना गया है।

कब आया था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

दरअसल, 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट 1989) के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाई है। कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है। जो सरकारी कर्मचारी नहीं है, उनकी गिरफ्तारी एसएसपी की इजाजत से हो सकेगी। हालांकि, कोर्ट ने यह साफ किया है कि गिरफ्तारी की इजाजत लेने के लिए उसकी वजहों को रिकॉर्ड पर रखना ही होगा।

क्या है नई गाइडलाइंस

एससी–एसटी मामलों में निर्दोष लोगों को बचाने के लिए कोई भी शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा। सबसे पहले शिकायत की जांच डीएसपी लेवल के पुलिस अफसर की शुरुआती जांच में किए जाने का प्रावधान किया जाएगा। यह जांच समयबद्ध तरीके से होनी चाहिए।

जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक न हो। डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है?

सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग की बात को मानते हुए कहा कि मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं।

एससी/एसटी एक्ट के तहत जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल करने के आरोपित को जब मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाए, तो उस वक्त उन्हें आरोपित की हिरासत बढ़ाने का फैसला लेने से पहले गिरफ्तारी की वजहों की समीक्षा करनी चाहिए।

सबसे बड़ी बात ऐसे मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही की जा सकेगी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वाले अफसरों को विभागीय कार्रवाई के साथ अदालत की अवमानना की कार्रवाही का भी सामना करना होगा।

पहले क्‍या थे ये नियम?

एससी/एसटी एक्ट में जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल संबंधी शिकायत पर तुरंत मामला दर्ज होता था। ऐसे मामलों में जांच केवल इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफसर ही करते थे। इन मामलों में मुकदमा दर्ज होने के बाद तुरंत गिरफ्तारी का भी प्रावधान था। ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत नहीं मिलती थी। सिर्फ हाईकोर्ट से ही नियमित जमानत मिल सकती थी।

सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर करने से पहले जांच एजेंसी को अथॉरिटी से इजाजत नहीं लेनी होती थी। एससी/एसटी मामलों की सुनवाई सिर्फ स्पेशल कोर्ट में ही होती थी।

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