राष्ट्रीय

जनजातीय परियोजना पर 2016-17 में मात्र 1 करोड़ रुपये खर्चे गए

नई दिल्ली, 28 मार्च (आईएएनएस)| सूचना का अधिकार(आरटीआई) अधिनियम के तहत हासिल की गई जानकारी से खुलासा हुआ है कि वर्ष 2014 में जनजातीय कल्याण के लिए केंद्र प्रायोजित योजना के अंतर्गत वर्ष 2016-17 में केवल एक करोड़ रुपये खर्च किए गए। वहीं वर्ष 2015-16 में इस योजना के अंतर्गत 200 करोड़ रुपये और वर्ष 2014-15 में 100 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। आरटीआई से यह भी खुलासा हुआ है कि इस योजना के अंतर्गत राशि का आवंटन भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के शासन वाले राज्यों में किया गया, जबकि कांग्रेस शासित राज्यों को दरकिनार किया गया।

वनबंधु कल्याण योजना(वीकेवाई) को केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने वर्ष 2014 में देश के छह करोड़ जनजातीय लोगों के संपूर्ण विकास के लिए शुरू किया था।

इसे मंत्रालय की वार्षिक योजना में केंद्रीय क्षेत्र की परियोजना के तौर पर शामिल किया गया था, जिसके अंतर्गत वर्ष 2014-15 के लिए शुरुआत में 100 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई थी।

उस समय हालांकि कांग्रेस शासित जनजातीय बहुल मेघालय व मणिपुर को और कांग्रेस शासित कर्नाटक व उत्तराखंड को मंत्रालय ने इस परियोजना की सूची में शामिल नहीं किया था।

राष्ट्रीय जनतांत्रित गठबंधन(राजग) शासित राज्य गोवा, हरियाणा और पंजाब को भी इस सूची में शामिल नहीं किया गया था, जिनमें से हरियाणा और पंजाब में जनजातीय आबादी नहीं है।

वनबंधु कल्याण योजना के अंतर्गत 2014-15 में लाभ पाने वाले भाजपा शासित राज्य छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान हैं। इनमें से प्रत्येक राज्य को इस योजना के अंतर्गत 10 करोड़ रुपये आवंटित किए गए।

आदिवासियों की बुरी हालत के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले वर्ष गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा था और पूछा था, वनबंधु योजना की 55,000 करोड़ रुपये की राशि कहां गई?

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