..तो अब नहीं होगा बुंदेलखंड में पेयजल संकट!
उरई (जालौन), 26 फरवरी (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के सात जिले प्राकृतिक आपदा के अलावा हर साल भीषण पेयजल संकट से भी जूझते हैं। ऐसा पहली बार हुआ है, जब सूबे के मुख्यमंत्री ने पेयजल संकट से निजात दिलाने के लिए अपने तीन मंत्रियों को भेजकर इस संकट से उबरने के लिए मंथन करवाया।
जालौन के उरई संभाग में रविवार को हुई इस मंथन बैठक से तो यही लगता है कि बुंदेलखंड में अब ‘पेयजल’ का संकट नहीं रहेगा।
उत्तर प्रदेश के हिस्से वाला बुंदेलखंड (बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर) पिछले तीन दशक से प्राकृतिक आपदाओं के अलावा ग्रीष्मकाल शुरू होते ही भीषण पेयजल संकट से जूझने लगता है। कहने को राज्य सरकार ने लाखों हैंडपंप लगवा चुकी है और निरंतर लगवाए भी जा रहे हैं। लेकिन, भूगर्भ जल का स्तर नीचे गिर जाने से हैंडपंप पानी देना बंद कर देते हैं और बुंदेली नदी-नालों का पानी पीने के लिए मजबूर हो जाते हैं। इसकी बानगी बांदा जिले के फतेहगंज क्षेत्र के जंगली इलाके में दो दर्जन गांव हैं, जो अभी से कंडैला नाला और बान गंगा नाले पर आश्रित हो चुके हैं।
बुंदेलखंड में पेयजल संकट को लेकर सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चिंता जायज है। उन्होंने अपने ग्राम्य विकास राज्यमंत्री डॉ. महेंद्र सिंह की अध्यक्षता में तीन मंत्रियों को बुंदेलखंड भेजा है, जिन्होंने रविवार को उरई में सभी बुंदेली विधायक और सांसदों के अलावा विभागीय अधिकारियों के बीच मंथन किया और पेयजल से निजात के लिए सभी विकल्पों पर विचार भी किया।
इस मंथन बैठक के बाद राज्यमंत्री डॉ. सिंह ने संवाददाताओं को बताया कि सात जिलों के लगभग 4500 गावों में पेयजल का संकट अधिक है, जिसमें 23 सौ गांवों में पानी की व्यवस्था कर दी गई है और शेष गांवों में की जा रही है।
उन्होंने बताया, डेढ़ दशक से लंबित पड़ी पेयजल परियोजनाओं को भी शुरू किया जाएगा और 15 मार्च तक सभी हैंडपंपों का रिबोर सुनिश्चित किया जाएगा।
मंत्री ने कहा, पेयजल और सिंचाई व्यवस्था के निदान के लिए सरकार संकल्पित है, हैंडपंप ठीक कराने के अलावा नहरों से तालाब भी भरे जाएंगे, ताकि मवेशियों को सहजता से पानी उपलब्ध हो सके। नगर विकास विभाग द्वारा 2175 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत नगर पंचायत, नगर पालिका परिषद और नगर निगमों के क्षेत्र में पेयजल संकट दूर किया जाएगा। साथ वाटर रिचार्जिग पर भी कदम उठाए जाएंगे।
इतना सब होने के बाद भी चित्रकूट जिले के पाठा क्षेत्र के वाशिंदों का पेयजल पर संशय बरकरार है, क्योंकि यहां एशिया की सबसे बड़ी ‘पाठा पेयजल योजना’ आधी-अधूरी संचालित है। कई दशक बाद भी लक्षित गांवों तक पानी नहीं पहुंच पाया और हर साल करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं।
इस योजना के विधिवत संचालन पर मंत्री या विधायक या सांसद कुछ नहीं बोले। अब देखना यह होगा कि बुंदेलखंड से पेयजल संकट दूर होगा या पूर्ववर्ती सरकारों की भांति मौजूदा सरकार भी महज ‘घड़ियालू आंसू’ बहाएगी।