अन्तर्राष्ट्रीय

अमेरिका की जगह भारत विश्व के अगुवा की भूमिका में

भारत पथ प्रदर्शक की भूमिका में आ रहा है, जबकि अमेरिका निस्तेज प्रकाश की तरह प्रतीत हो रहा है। बहुत हद तक इसमें नेतृत्व की अहम भूमिका है।

भारत के पास नरेंद्र मोदी जैसा नेता है जो भविष्य की ओर देखता है। वहीं, अमेरिका के पास डोनाल्ड ट्रंप जैसा नेता है जो अतीत को निहारता है। राष्ट्रपति ट्रंप व्यक्तिवाद और अलगाववाद की बात करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी व्यवसाय और विस्तारवाद पर जोर देते हैं।

फ्रीडम हाउस की ओर से जनवरी में जारी रिपोर्ट ‘फ्रीडम वर्ल्ड-2018’ में कहा गया है- दुनियाभर में लोकतंत्र को कमजोर करनेवाले घटनाक्रमों की लंबी फेहरिस्त है, लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात अमेरिका में देखी जा रही है, जहां लोकतंत्र को प्रोत्साहन व समर्थन देने की उसकी प्रतिबद्धता तेजी दुर्बल होती जा रही है।

रिपोर्ट में एग्रीगेट फ्रीडम स्कोर की रेटिंग 2017 में अमेरिका को 100 में से 86 अंक दिए गए हैं, वहीं भारत को इसमें 77 अंक मिले हैं। जाहिर है कि अमेरिका को भले ही ज्यादा अंक मिला हो, लेकिन 2008 की तुलना में उसे कम अंक मिला है। वर्ष 2008 में अमेरिका को 100 में से 94 अंक मिले थे।

जिन देशों को 90 या उससे ज्यादा अंक मिले हैं वे छोटे-छोटे देश हैं और आज जब ट्रंप प्रशासन इस दिशा में मुंह मोड़ रहा है, तब ये छोटे देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकतंत्र के अगुवा नहीं बन सकते।

लेकिन भारत नेतृत्व की भूमिका निभा सकता है। वर्ष 2017 के अंत में प्रधानमंत्री मोदी ने ज्यादा से ज्यादा लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं अपनाने और भारत के राजनीतिक दलों की भागीदारी बढ़ाने की अपील की है। इससे लगता है कि वह देश को अपनी इस जिम्मेदारी को ग्रहण करने की दिशा में ले जाने के प्रति उत्साहित होंगे।

दावोस के आर्थिक मंच पर 23 जनवरी को मोदी ने अपने उद्घाटन भाषण में भारतीय लोकतंत्र का जिक्र करते हुए आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के मामले में भारत की अहमियत साबित की। उन्होंने जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और संरक्षणवाद के मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता बनाने की अपील करते हुए मुक्त व्यापार और वैश्वीकरण को बढ़ावा देने की वकालत की थी।

मोदी ने साफ तौर पर यह नहीं कहा कि भारत व्यवसाय के लिए खुला है, लेकिन अपनी टिप्पणियों के जरिये इसका संदेश जरूर दिया।

वहीं, ट्रंप ने दावोस सम्मेलन के समापन भाषण में कहा कि प्रत्यक्ष रूप से कहा कि अमेरिका व्यवसाय के लिए खुला है, लेकिन उनकी टिप्पणियों से परोक्ष रूप से ऐसा संदेश नहीं मिला।

अपने भाषण के दौरान कई बिंदुओं पर उन्होंने जोर देर कहा, राष्ट्रपति के तौर पर मैं हमेशा अमेरिका को पहले तव्वजो दूंगा। अमेरिका अनुचित आर्थिक मामलों पर अब आंखें नहीं मूंदेगा। मेरे प्रशासन को कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु आग्नेयास्त्र से रहित करने को लेकर ऐतिहासिक कदम उठाने पर गर्व है।

राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने सहयोगात्मक पक्ष को प्रस्तुत करने की जितनी भी कोशिश की, उनमें उनका जुझारू स्वभाव और आत्म-केंद्रित नजरिया परिलक्षित हो ही गया।

इसके विपरीत प्रधानमंत्री मोदी ने अपना और भारत का सहयोगपूर्ण और सार्वदेशिक नजरिया पेश किया।

उन्होंने अपना भाषण समाप्त करते हुए कहा, अगर आप स्वस्थ रहते हुए धन की कामना करते हैं तो भारत में काम करें। अगर आप समृद्धि के साथ शांति चाहते हैं तो भारत में निवास करें। हम वादा करते हैं कि आपका एजेंडा हमारा गंतव्य होगा। हम दोनों का भविष्य सफल होगा।

संक्षेप में ट्रंप ने दावोस दुनिया को अपने राष्ट्रवाद के बारे में बताते हुए कहा, मेरे मार्ग में कोई राजपथ नहीं है। वहीं, मोदी ने कहा, मेरा पथ असीम आकाश का पथ है।

अमेरिका में ट्रंप के आने से दुनिया में नेतृत्व को लेकर खालीपन पैदा हुआ, जबकि ऐसा प्रतीत होता है कि भारत मोदी की अगुवाई में उस खालीपन को भरेगा।

वैश्विक सहभागिता के मामले में सकारात्मक और रचनात्मक एजेंडा अपनाने को लेकर मोदी अन्य वैश्विक नेता से अलग हैं।

हालांकि, विश्व की अगुवाई करते हुए भारत की यात्रा कब समाप्त होगी, इस संबंध में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन 2018 के आरंभ के साथ एक स्वर में इस यात्रा की शुरुआत तो हो सकती है, जैसाकि भारत सही राह पर अग्रसर है।

यह भी कहा जा सकता है कि अमेरिका अब विश्व का अगुआ नहीं रहा, बल्कि इस मामले में उसकी शक्ति घट गई है और वह पथविमुख हो गया है।

(फैंक एफ. इस्लाम वाशिंगटन डीसी स्थित एक उद्यमी व चिंतक हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

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