सुरक्षा परिषद सुधार प्रारूप में सार्वभौमिक विचारों को जगह मिले : भारत
संयुक्त राष्ट्र, 2 फरवरी (आईएएनएस)| भारत ने कहा है कि सुरक्षा परिषद सुधारों से संबंधित मसौदे में देशों के विभिन्न भिन्न विचारों और अलग-अलग विकल्पों को शामिल किया जाना चाहिए और किसी को भी यह जिद नहीं करनी चाहिए कि उसके विचारों और विकल्पों को दूसरे पर तरजीह दी जाए।
परिषद सुधारों पर अंतर सरकारी वार्ता (आईजीएन) में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने कहा, बहुपक्षवाद का पहला सिद्धांत समानता है।
आईजीएन का दो दिवसीय सत्र गुरुवार से शुरू हुआ।
अकबरुद्दीन ने कहा, हम केवल यह सुझाव दे रहे हैं कि हर किसी को अपने विकल्प एक दस्तावेज में पेश करने के लिए समान अवसर दिए जाने चाहिए।
उन्होंने कहा, कोई यह नहीं कह सकता कि उसके द्वारा जमा कराए गए सिद्धांतों पर पहले चर्चा की जानी चाहिए और बाकी पर उसके बाद में।
अकबरुद्दीन ने कहा, किसी निश्चित रुख का विरोध स्वभाविक है, लोकतांत्रिक है लेकिन प्रकिया को सामान्य बनाने का विरोध करना गलत है।
उन्होंने कहा, इस प्रक्रिया को सामान्य करने के मामले पर रोक लगाने की अनुमति से इस तंत्र की वैधता और विश्वसनीयता व संयुक्त राष्ट्र आम सभा को ही खतरा हो सकता है।
आईजीएन प्रक्रिया कम से कम पिछले एक दशक से पहली ही सीढ़ी पर इस कारण रुकी हुई है कि चर्चा के लिए आधार मुहैया करने वाले मसौदे में क्या होना चाहिए।
अकबरुद्दीन ने कहा, बातचीत का मसौदा इसकी स्पष्टता प्रदान करेगा कि हम कहां खड़े हैं, क्या विकल्प हैं, कौन क्या मांग रहा है और अंतर संबंध क्या हैं।
उन्होंने कहा, दस्तावेज स्थिति एक सम्पूर्ण रूप से और पारदर्शी तरीका है कि हम आगे बढ़ने के लिए लिए आपसे क्या मांग रहे हैं।
उन्होंने कहा, यह हमारा मामला नहीं है कि जो दस्तावेज आपने बनाया है उसमें केवल एक विकल्प की जरूरत है। इसमें कई समूह, कई विकल्प को शामिल किया जा सकता है।