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संगीत में प्रयोग जरूरी पर संस्कृति व मूल को नहीं भूलना चाहिए : शारदा सिन्हा

पटना, 26 जनवरी (आईएएनएस)| भोजपुरी, मैथिली, मगही, बज्जिका सहित आधा दर्जन से अधिक बोलियों और भाषाओं के लोकगीतों को लोकप्रिय बनाने वाली गायिका शारदा सिन्हा का मानना है कि संगीत में नए प्रयेाग जरूरी हैं, परंतु अपनी संस्कृति और मूल को नहीं भूलना चाहिए नहीं तो आने वाली पीढ़ी इन्हीं चीजों को असली समझ बैठेगी।

शारदा सिन्हा को इस वर्ष पद्मभूषण सम्मान के लिए चुना गया है। वह 1991 में पद्मश्री से सम्मानित हो चुकी हैं। ‘बिहार कोकिला’ के नाम से प्रसिद्घ लोक गायिका का कहना है कि उन्होंने कभी पुरस्कार के लिए गीत नहीं गाया। वह गीत गाती गईं और जो भी मिला उसे सहर्ष स्वीकार भी करती गईं। वह यह भी कहती हैं कि पुरस्कार मिलने से खुशी तो मिलती है परंतु जवाबदेही भी बढ़ जाती है।

‘बिहार गौरव’, ‘बिहार रत्न’ जैसे तमाम पुरस्कारों से सम्मानित शारदा सिन्हा ने आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में पद्मभूषण सम्मान को अपने प्रशंसकों और श्रोताओं को समर्पित करते हुए कहा, मैं इस पुरस्कार या सफलता का श्रेय सामूहिक रूप से देती हूं। मैंने मेहनत की है और इस माटी की खुशबू को फैलाया है। इस खुशबू को जिसने फैलाया है, उसमें मेरे चाहने वालों और श्रोताओं का बहुत बड़ा योगदान ृहै। उनका सम्मान इसी रूप में मुझे मिलता रहा है।

उन्होंने इसका श्रेय अपने परिवार को भी दिया जिनका साथ उन्हें हर वक्त मिला है।

संस्कार गीतों को आंगन की चारदीवारी से बाहर निकालकर आमजन तक लोकप्रिय बनाने वाली शारदा सिन्हा मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित बिहार के रोहतास जिले के शहीद ज्योति प्रकाश के जज्बे को भी सलाम करती हैं। ज्योति प्रकाश जम्मू-कश्मीर में तीन आतंकवादियों को मारने के बाद स्वयं वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

भोजपुरी गीतो में फूहड़ता के संबंध में पूछे जाने पर लोकगीत साम्राज्ञी कहती हैं, मैंने फिल्मों में या भोजपुरी आदि भाषाओं के गीत गाते समय कभी भी सस्ती लोकप्रियता पाने का लोभ नहीं किया और इसीलिए उसके ‘कंटेंट’ से भी समझौता नहीं किया। कभी ऐसे समय आए तो या तो ऐसे अवसर खोने पड़े या फिर मैंने खुद उसमें बदलाव कर दिए।

चार दशकों से लोकप्रियता के शिखर पर रहने वाली लोक गायिका का कहना है कि आज लोग सस्ते और सहज उपलब्ध संगीत के चक्कर में फूहड़ गायन को पसंद करने लगे हैं, जो हमारे समाज और आने वाली पीढ़ी के लिए बेहद घातक है।

उन्होंने आईएएनएस से कहा, नई पीढ़ी को तो यह ज्ञान ही नहीं है कि हमारी संगीत परम्परा कितनी उच्च कोटि की रही है। इस महान संगीत परम्परा से उन्हें अवगत कराना भी हमारा ही कर्तव्य है। अन्यथा वे आज के बाजारू संगीत को ही यथार्थ समझने लगेंगे। इतिहास ऐसे ही थोड़े बनता है।

खनकदार और कशिश भरी आवाज की मलिका किसी भी श्रोता को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इनकी खास तरह की आवाज है, जिसमें इतने सालों के बाद भी कोई बदलाव नहीं आया है।

श्रोताओं के लिए चार दशक से पसंदीदा बने रहने के कारणों के विषय में पूछे जाने पर बिहार कोकिला कहती हैं, लोगों को मेरी आवाज इसलिए भाती है क्योंकि मैं जो भी गाना गाती हूं उसमें पूरी तरह से डूब जाती हूं, उसमें जीने लगती हूं। वैसे यह श्रोताओं का विषय है कि उन्हें मेरे गीत क्यो पसंद हैं? हां, हजारों- लाखों श्रोताओं के इस प्यार का आभार है।

छठ गीत और भोजपुरी गीतों के लिए प्रसिद्घ शारदा सिन्हा यह भी मानती हैं कि सभी लोगों की अपनी-अपनी पसंद रहती है।

उन्होंने कहा, गीत में मौलिकता एक बड़ी चीज होती है। श्रोताओं के मन में यह धारणा तो जरूर है कि शारदा जी जो गाएंगी, वह सही गाएंगी। उन्होंने अगर गाया है तो मौलिक चीजों को गाया होगा।

उन्होंने बताया, मैंने भिखारी ठाुकर, विद्यापति, महेंद्र मिश्र और रघुवीर शरण के बटोहिया को गाया। इस तरह की चीजों से लोगों के मन में एक बात आती हैं कि मैंने अपनी संस्कृति को गाया है और आज भी इस पर अडिग हूं। मैंने अपनी गीतों में प्रारंभ से ही मूल को बरकरार रखा है।

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