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‘योगनगरी’ में नववर्ष मनाने का अलग है अंदाज

मुंगेर, 31 दिसंबर (आईएएनएस)| आधुनिकता की अंधीदौड़ में आमतौर पर लोग अपनी परंपरा को नजरअंदाज करते जा रहे हैं, परंतु आज भी कई ऐसे संस्थान हैं जो अपनी परंपरा का निर्वाह ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि देश-विदेश में नाम भी कमा रहे हैं।

‘योगनगरी’ के रूप में चर्चित बिहार के मुंगेर में स्थित बिहार योग विद्यालय एक ऐसा ही संस्थान है, जहां आज नववर्ष मनाने की अलग परंपरा है। यहां नववर्ष की खुशियां तो अवश्य मनाई जाती हैं, परंतु उसका अंदाज बिल्कुल ही अलग होता है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त विश्व योग आंदोलन के प्रवर्तक स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित बिहार योग विद्यालय में नववर्ष के प्रथम दिन यहां सुंदरकांड का पाठ होता है और फिर 108 बार हनुमान चालीसा का पाठ होता है। इस अनुष्ठान में बाल योग मित्र के बच्चे बड़ी संख्या में शिरकत करते हैं।

इस परंपरा की नींव इस विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने डाली है। उनके मुताबिक नया साल अच्छाइयों को आत्मसात करने का संकल्प लेने का है।

आश्रम के वरिष्ठ सन्यासी स्वामी शंकरानंद बताते हैं कि इस दिन आश्रम के संन्यासी के अतिरिक्त सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया के दूसरे देशों के लोग भी यहां आते हैं। इस दिन सुबह से ही पाठ का कार्यक्रम प्रारंभ हो जाता है, जो देर तक चलता है।

रोटरी क्लब से जुड़े शिव कुमार रूंगटा बताते हैं कि ऐसे अनुष्ठान के साकारात्मक ऊर्जा विकसित होती है, तभी तो यहां विराट समागम होता है। पश्चिम के देशों के अलावा इराक, इरान से भी लोग यहां इस मौके पर आते हैं।

भारतीय स्टेट बैंक के वरिष्ठ अधिकारी आऱ एऩ सिंह का कहना है कि बिहार के कई स्थानों से भी लोग यहां नववर्ष मनाने पहुंचते हैं। उनका कहना है कि इस आयोजन से अपनी संस्कृति को भी समझने का मौका मिलता है। सिंह एसे लोगों में शामिल हैं जो पिछले कई वर्षो से यहां नववर्ष मनाने पहुंचते हैं।

नववर्ष के पहले दिन यहां परमाचार्य स्वामी निरंजनानंद सरस्वती लोगों को संदेश देते हैं।

सरस्वती के मुताबिक, मनुष्य का संबध उसकी श्रद्धा, आस्था और विश्वास के माध्यम से किसी परम तत्व से भी जुड़ा है, जिसका अनुभव किया जा सकता है। वर्तमान युग में अपनी श्रद्धाभक्ति को सुरक्षित रखना और उसे एक दिशा प्रदान करना, यह जीवन की आवश्यकता है। हमारी संस्कृति की यही शिक्षा है। संसार में किसी को आध्यात्म की शिक्षा चाहिए तो वह फ्रांस, चीन, रूस, अमेरिका या जापान नहीं जाता, वह भारत की ओर आता है।

इस विद्यालय में दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों की उपस्थिति इस बात को प्रमाणित करती है। सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में उपनिदेशक पद से सेवानिवृत्त डॉ. रामनिवास पांडेय कहते हैं कि नववर्ष के अवसर पर यहां होनेवाले इस अनुष्ठान के माध्यम से जीवन के सभी पहलुओं को साकारात्मक रूप प्रदान किया जाता है, जिससे सामाजिक परिवेश में सात्विकता, सौंदर्य, सामंजस्य और सृजनात्मकता का अनुभव किया जा सके।

कहा जाता है कि विश्व योग आंदोलन के प्रवर्तक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती को दिव्यदृष्टि से यह पता चला था, यह स्थान योग का अधिष्ठान बनेगा और योग विश्व की भावी संस्कृति बनेगी। स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने बसंत पंचमी के दिन 19 जनवरी, 1964 को बिहार योग विद्यालय की स्थापना की थी।

19 जनवरी, 1983 में बसंत पंचमी के दिन ही उन्होंने बिहार योग विद्यालय की अध्यक्षता स्वामी निरंजनानंद सरस्वती को सौंपी। योग आंदोलन का ही नतीजा है कि योग का प्रवेश भारतीय समाज के अनेक क्षेत्रों और वर्गो सेना, रेलवे, पुलिस, जेल और महाउद्योगों सहित घर-घर में हो चुका है और वह विकास के एक स्तर तक पहुंच चुका है।

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