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प्रतिकूल कारक टले, अर्थव्यवस्था पटरी पर : टी.सी.ए. अनंत

नई दिल्ली, 10 दिसंबर (आईएएनएस)| नोटबंदी और जीएसटी समेत जो भी कारक पिछली पांच तिमाहियों में विकास दर में गिरावट के लिए उत्तरदायी रहे हैं, उनका प्रभाव खत्म हो गया है और भारत की अर्थव्यवस्था अब पटरी पर लौट आई है।

आगामी तिमाहियों में उध्र्वगामी विकास दर देखने को मिलेगी। यह कहना है भारत सरकार के प्रमुख सांख्यिकीविद टी.सी.ए. अनंत का।

अनंत को लगता है कि सुस्त कृषि विकास दर और महंगाई को लेकर जो चिंता जाहिर की जा रही है, वह भी कुछ बढ़ा-चढ़ाकर ही की जा रही है। वह कहते हैं कि चालू वित्तवर्ष में ‘निश्चित रूप से महंगाई दर चार फीसदी से नीचे रहेगी’।

अनंत ने हालांकि चालू वित्तवर्ष में सकल घेरलू उत्पाद (जीडीपी) में विकास दर का स्पष्ट अनुमान नहीं बताया, लेकिन उनका मानना है कि विकास दर उध्र्वगामी दिशा में दर्ज की जा सकती है।

आईएनएस के साथ साक्षात्कार में अनंत ने कहा, अगर पिछले वित्तवर्ष की चारों तिमाहियों और चालू वित्तवर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी (विकास दर) में गिरावट के कारकों पर विचार करें तो यह तर्क देना संभव है कि उन कारकों का असर खत्म हो चुका है। इसलिए हमें अब विकास दर में सुधार देखना चाहिए।

अनंत के मुताबिक, पहला कारक वस्तुओं की वैश्विक कीमतें हैं, जिनमें 2014-15 में आई गिरावट के चलते निवेश लागत निचले स्तर पर पहुंच गई। इस कारण वित्तवर्ष 2014-15 और 2015-16 में विकास दर में बढ़ोतरी दर्ज की गई। लेकिन एक बार फिर वस्तुओं कीमतों में सुधार आने के बाद विकास दर घट गई, जोकि पिछले पांच तिमाहियों में देखी गई।

पिछले सप्ताह सीएसओ की ओर से सितंबर में समाप्त हुई दूसरी तिमाही की विकास दर जारी की गई थी, जिसमें पिछली पांच तिमाहियों की गिरावट के बाद सुधार दर्ज किया गया था। विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादों में तेजी के साथ-साथ अर्थव्यवस्था उध्र्वगामी विकास दर प्राप्त करने के लिए तैयार है।

अनंत ने बताया कि रियल-स्टेट के क्षेत्र में आया संकट, जहां उच्च विकास दर के दौर में तीव्र विकास दर्ज की गई थी, और बैंकों के फंसे हुए कर्ज (एनपीए) समेत कई घरेलू कारक रहे हैं, जिनके कारण पिछली तिमाहियों में देश के विकास दर में गिरावट आई।

एनपीए संकट के संबंध में अनंत ने कहा, जहां तक निजी निवेश का सवाल है, तो एनपीए के कारण कुछ रुकावट जरूर आई है। उनका कहना था कि एनपीए या ऐसी परिसंपत्तियां जो बुरी स्थिति में चली जाती थीं, उसका दौर बहुत हद तक खत्म हो गया और अर्थव्यवस्था उस चरण में है, जहां इस मसले का समाधान तलाशने की कोशिश की जा रही है।

अनंत ने बताया कि साथ ही, वर्ष 2017-18 के चौथी तिमाही में नोटबंदी का भी अल्पकालिक प्रभाव रहा। इसके बाद चौथा सबसे बड़ा कारक ढांचागत सुधार था। सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने का फैसला लिया, जिससे खलल पड़ना स्वाभाविक था। खासतौर से विनिर्माण क्षेत्र की कंपनियों को जीएसटी लागू होने से पूर्व तैयार की गई वस्तुओं को लेकर परेशानियां हुईं, लेकिन जीएसटी को अमलीजामा प्रदान करने के बाद अब समस्याओं का समाधान हो चुका है।

उधर, भारतीय रिजर्व बैंक (आबीआई) ने पांचवीं द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में प्रमुख ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखने के पीछे महंगाई को एक कारण बताया था, लेकिन अनंत ने महंगाई की चिंता को सिरे से खारिज किया है।

अनंत का तर्क है कि पिछले कुछ महीनों में खाद्य पदार्थो की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण महंगाई दर्ज की गई थी, लेकिन आगामी मौसमी कारकों के चलते परंपरागत रूप से खाद्य पदार्थो की कीमतों में गिरावट रहती है।

कृषि विकास दर में गिरावट के संदर्भ में उनका कहना है कि इस साल फसलों का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले थोड़ा कम जरूर है, लेकिन उससे पीछे के चार-पांच साल के उत्पादन रिकार्ड को देखें, तो इस साल उत्पादन निश्चत तौर पर बेहतर रहा है।

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