पूर्वोत्तर की नई स्टार हैं मुक्केबाज अंकुशिता
नई दिल्ली, 9 दिसम्बर (आईएएनएस)| हाल ही में एआईबीए यूथ विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल करने वाली अंकुशिता बोरो की सफलता ने उन्हें मुक्केबाजी का नया सितारा बना दिया है, लेकिन बहुत की कम लोग जानते हैं कि 17 साल की इस लड़की ने कुछ साल पहले रिंग में उतरना छोड़ दिया था।
मध्य असम के सोनितपुर शहर के मेघाई जारानी गांव से आने वाली अंकुशिता ने गुवाहाटी में बीते दिनों लाइट वेल्टरवेट (64 किलोग्राम भारवर्ग) में स्वर्ण पदक जीत अपने घरेलू प्रशंसकों को झूमने का मौका दिया था।
इस जीत के बाद उन्हें शुक्रवार को केंद्रीय खेल मंत्री राज्यवर्धन राठौर ने 6.7 लाख रुपये का पुरुस्कार दिया। इसके आलावा भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) के अध्यक्ष अजय सिंह ने उन्हें दो लाख रुपये का पुरस्कार अलग से दिया।
लेकिन अंकुशिता के लिए यह जिंदगी कभी भी आसान नहीं रही। उनके खेल के प्रति प्यार को देखते हुए उनके शहर के लोग हैरान हो गए थे।
प्राइमरी स्कूल के शिक्षक राकेश कुमार और मां रंजिता की बेटी अंकुशिता ने 11 साल की उम्र से अपना सफर पूरा किया और घर से 165 किलोमीटर दूर गोलाघाट में भारतीय खेल प्राधिकरण में पहुंची।
इस युवा खिलाड़ी ने कोच त्रिदिब बोरा के मार्गदर्शन में जल्दी-जल्दी अपने कदम आगे बढ़ाए, लेकिन भारतीय मुक्केबाजी में हुए विवाद ने उन्हें अपने करियर के बारे में सोचने पर विवश कर दिया।
अंकुशिता ने आईएएनस से कहा, जब मैंने 2012 में खेलना शुरू किया था, तब मैं सौभाग्यशाली थी की मुझे हर तरह की सुविधाएं मिलीं जिनमें त्रिदिब सर जैसे शानदार कोच भी मिले, लेकिन हालात दिन ब दिन बिगड़ते चले गए।
उन्होंने कहा, घर और केंद्र दोनों जगह प्रशासनिक कार्यप्रणाली में विवाद हुए। साथ ही टूर्नामेंट भी नहीं हुए जिसने मेरे जैसे युवा खिलाड़ियों को निराश कर दिया।
उन्होंने कहा, इस दौरान मेरी परीक्षा भी थीं। उसी दौरान मैंने तकरीबन छह महीनों के लिए अपने दस्तानों को हाथ नहीं लगाया, लेकिन मेरे परिवार को शुक्रिया, जिन्होंने मुझे प्रेरित किया और मुझे आत्मविश्वास दिलाया।
भारतीय मुक्केबाजी में तकरीबन चार साल तक चले विवाद के बाद सिंतबर 2016 में बीएफआई का गठन हुआ और तब से भारतीय मुक्केबाजी पटरी पर लौटी।
इसी साल की शुरुआत में अंकुशिता ने राष्ट्रीय यूथ चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता था। इसके बाद तुर्की में आयोजित अहमद कोमेर्ट अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट, बुल्गारिया में आयोजित बाल्कान यूथ अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में उन्होंने रजत पदक अपने नाम किया था।
यूथ वर्ल्ड में अपने प्रदर्शन पर अंकुशिता ने कहा, पहले दो राउंड में जीत ने मुझे आत्मविश्वास दिया। इस चैम्पियनशिप में जब मैंने तुर्की की काग्ला अलुक को मात दी तो मैंने अपना बदला भी पूरा किया। उन्होंने अहमद कोमेर्ट टूर्नामेंट में मात दी थी।
उन्होंने कहा, अगले दौर में मैंने अपने से मजबूत रेबेका निकोली को हराया जिनसे मैं बुल्गारिया में हारी थी। इन दो जीतों ने मुझे आत्मविश्वास दिया।
इस चैम्पियनशिप में 64 किलोग्राम भारवर्ग में जीत हासिल करने के बाद भी अंकुशिता ने कहा कि वह अपने पुराने भारवर्ग 60 किलोग्राम में वापसी करना चाहती हैं और अब उनकी नजरें भारत में अगले साल होने वाली विश्व इलिट महिला चैम्पियनशिप और टोक्यो ओलम्पिक-2020 पर हैं।
अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) ने हाल ही में भारवर्ग श्रेणी में बदलाव किए हैं जिसके तहत 64 किलोग्राम श्रेणी अब खेलों में नहीं होगी।
अंकुशिता से जब पूछा गया कि वह असम में खेल को बढ़ावा देने के लिए क्या करेंगी तो उन्होंने कहा, असम में नए कोचों को लाने की जरूरत है। अब हमारे पास देश के अन्य हिस्सों से आने वाले कोच भी मौजूद हैं, लेकिन जब हमारे पास स्थानीय कोच होंगे तो हमारे लिए उनसे बात करना और प्रशिक्षण लेना आसान होगा।