संगीत में बदलाव के पीछे बाजार जिम्मेदार : हैरी आनंद
नई दिल्ली, 29 नवंबर (आईएएनएस)| अपने शुरुआती करियर में 70 व 80 के दशक के कई हिट गानों के रीमिक्स से लोगों को झूमने पर मजबूर कर चुके संगीतकार हैरी आनंद फिल्मों के साथ ही अपनी खुद की रचनाओं को भी आयाम दे रहे हैं।
उन्होंने 1999 में संगीत की दुनिया में कदम रखा था। आज संगीत बदलाव के दौर से गुजर रहा है। हैरी का कहना है कि संगीत में बदलाव के पीछे बाजार की मांग जिम्मेदार है।
हैरी को अपने शुरुआती करियर में 70 और 80 के दशक के गीतों जैसे ‘कांटा लगा’, ‘कैसे बनीं’, ‘भोर भये’, ‘मौसम मस्ताना’ और ‘झुमका गिरा रे’ के रीमिक्स से काफी प्रसिद्ध मिली थी। इसके अलावा उन्होंने ‘जानी दुश्मन’, ‘बिच्छू’, महेश भट्ट की ‘दुश्मन’, ‘जीना इसी का नाम है’ और ‘रेड अफेयर’ जैसी फिल्मों में संगीत दिया और कई अल्बम भी किए। हैरी अपने हालिया गीत ‘बेबी तेरा फ्रॉड रोमांस’ को लेकर चर्चा में हैं। यह गीत उनके संगीत में आए बदलाव को साफ बयां कर रहा है।
इस बदलाव के बारे में उन्होंने आईएएनएस से कहा, बदलाव बाजार की मांग के अनुरूप है। मौजूदा समय में फास्टफूड की संस्कृति का चलन बढ़ा है और यह बात संगीत पर भी लागू होती है। इस समय लोगों के पास समय की कमी है। ऐसे में अगर हमें उनको अपने संगीत से बांधना है तो ऐसे शब्द और संगीत का प्रयोग करना होगा, जो उन्हें आसानी से समझ आ सके और लंबे समय तक याद भी रहे। हमारे ऊपर कम समय में अपने संगीत को हिट कराने का दबाव होता है।
हैरी मशहूर संगीत निर्देशक आनंद राज आनंद के भाई हैं। हैरी से उनके करियर के दौरान संगीत में आए बदलाव के बारे में पूछा गया। उन्होंने कहा, जी, बिलकुल बदलाव आया है। संगीत में तब से लेकर अब तक काफी बदलाव आया है और मैं मानता हूं कि यह बदलाव जरूरी भी है। वक्त के साथ संगीत की शैली, भाव और उपकरणों तक में बदलाव होते हैं। जैसे मैंने कहा कि लोगों का आज इंस्टैंट चीजों की तरफ अधिक झुकाव है और यही झुकाव यहां भी देखने को मिलता है।
उन्होंने कहा, मैं हालांकि मानता हूं कि इसकी भी एक सीमा है। लोग हर वक्त एक ही तरह के संगीत को पसंद नहीं करते हैं। लोगों को अपने मूड के हिसाब से संगीत चाहिए होता है, अगर वे किसी पार्टी में हैं तो उन्हें उस तरह का संगीत सुनना होता है और अगर वे उदास हैं तो हल्के व पुराने गीत-संगीत को सुनना पसंद करते हैं। इसलिए संगीत चाहे किसी भी तरह का हो, वह सदाबहार रहता है।
फिल्मों और अल्बम में कहां अधिक मजा आता है? वह कहते हैं, मैं दोनों का ही आनंद उठाता हूं, हालांकि अपने खुद के गीतों में अधिक आजादी मिलती है और वहां आपकी रचनात्मकता खुलकर सामने आती है। मैं मानता हूं कि दोनों का ही अपना महत्व है।
फिल्मों पर विवाद और बढ़ते राजनीतिक दखल के बारे में हैरी कहते हैं, ये चीजें रचनात्मकता के लिए काफी हानिकारक हैं। हमारा संविधान कलाकारों को अपनी रचना को प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता देता है और ऐसे में उसे रोकना बहुत ही गलत है। हालांकि मैं यह भी मानता हूं कि संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों ओर से प्रयास किया जाना चाहिए। हमें समाज पर नकारात्मक असर डालने वाली सामग्री परोसने से बचना चाहिए। लेकिन इसके लिए हिंसा नहीं उचित तरीके से काम करना चाहिए। मुझे लगता है कि किसी भी फिल्मकार को उसकी रचनात्मकता को लोगों के सामने दिखाने से रोका जाना गलत है।
गौरतलब है कि संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ इन दिनों विवादों में है। इससे पहले भी ‘एस. दुर्गा’ और ‘न्यूड’ जैसी फिल्मों को भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में दिखाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।