राष्ट्रीय

‘गंगा की सफाई असंभ नहीं, मगर बहुत मुश्किल’

नई दिल्ली, 19 नवंबर (आईएएनएस)| करीब पांच साल जब पहले फाइनेंसियल टाइम्स के पत्रकार व लेखक विक्टर मैलेट ने दिल्ली में रहना शुरू किया तो वह यह जानकर स्तब्ध हो गए कि भारतीय पौराणिक कथाओं की सुंदर नदी यमुना दिल्ली शहर से गुजरने व मथुरा, आगरा व इलाहाबाद में गंगा से मिलने तक बिना उपचारित सीवेज व औद्योगिक कचरे से भरी हुई है।

उन्होंने आश्चर्य जताया कि कैसे एक नदी, जो बहुत से भारतीयों के लिए पवित्र है, वह इतनी प्रदूषित व उपेक्षित हो सकती है। इसके बाद उन्होंने गंगा की दुर्दशा को दिखाना तय किया।

मैलेट ने अपनी पूरी यात्रा के दौरान गोमुख व सागर द्वीप व बंगाल की खाड़ी में सुंदरबन सहित नदी के कई महत्वपूर्ण स्थलों को देखा। इस अनुभव को उन्होंने ‘रिवर ऑफ लाइफ, रिवर ऑफ डेथ’ (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस/550 रुपये/316 पृष्ठ)में संग्रहित किया है।

मैलेट ने कहा, मेरा निष्कर्ष है कि गंगा को साफ करना असंभव तो नहीं है, लेकिन यह बहुत ही मुश्किल है। कई भारतीय प्रधानमंत्रियों की गंगा को बचाने की योजना में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मैं कहूंगा कि सबसे ज्यादा उत्साही हैं। लेकिन वास्तव में विश्व बैंक व जापान जैसे अंतर्राष्ट्रीय दाताओं व भारत में उपलब्ध धनराशि के बावजूद उन्हें (मोदी) अपने पूर्ववर्तियों की तरह योजनाओं को लागू करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

मैलेट ने हांगकांग से आईएएनएस से एक ईमेल साक्षात्कार में कहा, स्पष्ट तौर पर गंगा में सीवेज, औद्योगिक कचरा व कीटनाशक का बहाया जाना भौतिक प्रदूषण की बड़ी समस्याएं हैं। बहुत ज्यादा पानी का इस्तेमाल गर्मी के मौसम में सिंचाई के लिए किया जाता है, जिससे मानसून से पहले नदियों में पानी कम हो जाता है। लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति व सार्वजनिक सहयोग से यह किया जा सकता है। मेरा मानना है कि भारत में किसी को नदी को बचाने पर एतराज नहीं है।

उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण बात सोच में बदलाव लाना है और उन्होंने इस संदर्भ में उल्लेख किया कि हिंदू भक्तों के बीच यह आम धारणा है कि ‘मां गंगा धार्मिक रूप से इतना पवित्र हैं कि हमारे कुछ भी नदी में फेंकने से उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा।’

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