राष्ट्रीय

मुक्तिबोध ने मार्क्‍सवादी निष्ठा में आध्यात्मिकता जोड़ी : अशोक वाजपेयी

रायपुर, 12 नवंबर (आईएएनएस/वीएनएस)। प्रसिद्ध कवि व समालोचक अशोक वाजपेयी ने यहां रविवार को कहा कि मुक्तिबोध हिंदी साहित्य के सबसे बड़े आत्माभिवादी कवि हैं।

उन्होंने मार्क्सवादी निष्ठा में आध्यात्मिकता की बढ़त दी है। वह नैतिक कवि भी हैं, लेकिन संशयग्रस्त हैं। उनकी रचनाओं में एक नहीं, अनेक जगह नैतिकता और आध्यात्मिकता के बिंब मिलते हैं। (19:00)
वाजपेयी ने यह वक्तव्य रायपुर के वृंदावन सभागार में गजानन माधव मुक्तिबोध जन्मशती पर ‘अंधेरे में अंत:करण’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में दिया। आरंभिक वक्तव्य देते हुए व्यक्त किया। दो दिनी संगोष्ठी का आयोजन रजा फाउंडेशन एवं मुक्तिबोध परिवार की ओर से किया गया है।

अशोक वाजपेयी ने कहा कि मुक्तिबोध स्वयं को इस समाज के पतन के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका स्वयं को जिम्मेदार मानना, सबसे बड़ी नैतिकता है। मार्क्सवादियों में मुक्तिबोध अकेल ऐसे कवि हैं, जिनकी ष्टि मार्क्सवाद से परे जाती है।

उन्होंने आगे कहा कि कवि मुक्तिबोध अपने काल में न तो भौतिक रूप से और न ही साहित्यक रूप से सफल माने जा सकते हैं, क्योंकि इतने बड़े कवि होने के बाद भी वे अपने समकालीनों को यह बताने में असफल रहे कि वह महत्वपूर्ण कवि हैं।

वाजपेयी ने कहा, विचारधारा जहां लोगों को भयमुक्त करती है, वहीं उनके अंत:करण में संशय विद्यमान रहा। छोटी कविताओं के दौर में भी वे बड़ी कविता लिखते हैं। भौतिक रूप से भी उन्हें सफल नहीं कहा जा सकता। इसके बावजूद उनकी राजनीति और समाज पर गहरी पकड़ थी। वह अंधेरी मनुष्यता विरोधी शक्तियों की पूरी भयावहता के सच को पहचानते थे। उन्होंने बहुत पहले ही समाज के इस हश्र को समझ लिया था, इसीलिए उनकी कविता आज यथार्थ लगती है।

उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध गोत्रहीन पूर्वजहीन कविता के कवि हैं। बिना प्रेम और विरह पर लिखे प्रसिद्धि पाने वाले वह हिंदी साहित्य के एक मात्र महान कवि हैं और उनका कोई दूसरा उदहारण नहीं है।

वाजपेयी ने मुक्तिबोध और गांधी की तुलना करते हुए कहा कि जैसे गांधी के नाम पर बहुत आयोजन होते हैं, लेकिन उनकी राह पर कोई नहीं चलता, ऐसे ही मुक्तिबोध पर चर्चा तो बहुत होती है, लेकिन उनकी तरह कोई दूसरा नहीं लिखता।

उन्होंने कहा, वास्तव में मुक्तिबोध की तरह कोई दूसरा अभिव्यक्ति के खतरे नहीं उठा पाता है। न तो इतिहास में ऐसा कवि हुआ है और न आने वाले दस बीस साल तक कोई संभावना बनते दिख रही है।

वाजपेयी के प्रारंभिक वक्तव्य के बाद प्रख्यात महिला कथाकार कृष्णा सोबती की लिखी पुस्तक ‘मुक्तबोध’ का विमोचन किया गया। वाजपेयी ने कहा कि यह दुर्लभयोग है कि कोई महान लेखक दूसरे लेखक के ऊपर पुस्तक लिखता है, लेकिन यह मुक्तिबोध के साथ हुआ है।

कार्यक्रम में अन्य साहित्यकार- पुरुषोत्तम अग्रवाल, सुधीर चंद्रा, अपूर्वानंद, लीलाधर मंडलोई, नरेश सक्सेना, ओम निश्चल, विष्णु नागर, सविता सिंह, हेमलता माहेश्वर, श्रीकुमार प्रशांत, राजेंद्र कुमार, वैभव सिंह, दुर्गाप्रसाद गुप्ता, विष्णु खरे, आशीष त्रिपाठी, नंद किशोर आचार्य, सदानंद साही, अरुण कमल, रेवती रमण, ललित सुरजन और विनोद कुमार शुक्ल भी शामिल हुए।

Show More

Related Articles

Back to top button
Close
Close