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व्यापमं के अफसरों, संघ नेताओं के नाम आरोप-पत्र में नहीं : कांग्रेस

भोपाल, 1 नवंबर (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश के बहुचर्चित व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले में मंगलवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा भोपाल की विशेष अदालत में पेश किए गए आरोप-पत्र में व्यापमं के अधिकारियों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े नेताओं के नाम न होने पर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि सीबीआई ने किसी को फंसाने और किसी को बचाने की कोशिश की है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने बुधवार को एक बयान जारी कर कहा, जिस उम्मीद और विश्वास के साथ व्यापमं घोटाले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी, उसे ध्वस्त करते हुए सीबीआई आरोपियों, इससे जुड़ी मौंतों के मामलों में दोषियों को क्लीनचिट देने का काम कर रही है।

ज्ञात हो कि मंगलवार को सीबीआई ने भोपाल की विशेष अदालत में पेश किए गए आरोप-पत्र में कहा है कि उसने अपनी जांच में हार्ड डिस्क से किसी तरह की छेड़छाड़ होना नहीं पाया है। साथ ही ‘सीएम’ शब्द का कहीं जिक्र नहीं है।

नेता प्रतिपक्ष सिंह ने सीबीआई की जांच पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा, पंकज त्रिवेदी व्यापमं के 2013 में पीएमटी प्रवेश परीक्षा में हुए घोटाले के दौरान कंट्रोलर और डायरेक्टर थे। उन्हें जब गिरफ्तार किया तो उनके पास से एक करोड़ रुपये नगद जप्त हुए थे। वह ढाई साल जेल में भी रहे। ऐसे व्यक्ति का सीबीआई के आरोप-पत्र में नाम न होना बहुत कुछ कहता है।

सिंह ने आगे कहा, सुधीर भदौरिया व्यापमं के वर्ष 2008, 2009 और 2010 तक कंट्रोलर और डायरेक्टर थे। इस दौरान जो परीक्षाएं हुईं, उसके 333 परीक्षार्थी एमबीबीएस में चयनित हुए थे। उनके चयन को सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द किया। उनसे भी सीबीआई ने न कोई पूछताछ की और न ही उनके खिलाफ कोई एफआईआर हुई।

सिंह ने आरोप लगाया, आरएसएस के पूर्व सरसंघचालक दिवंगत सुदर्शन के निजी सचिव मिहिर चौधरी का चयन नापतौल विभाग में सब इस्पेंक्टर के तौर पर व्यापमं के जरिए हुआ था। उसने अपने बयान में दिवंगत सुदर्शन और संघ के सुरेश सोनी का नाम लिया था। उनसे कोई पूछताछ सीबीआई ने नहीं की।

सिंह ने आरोप लगाया है, सीबीआई ने ट्रांसपोर्ट कांस्टेबल भर्ती घोटाले की भी कोई जांच नहीं की, जबकि इसमें तत्कालीन परिवहन मंत्री जगदीश देवड़ा के निजी सचिव गुर्जर आरोपी हैं। एसटीएफ ने पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को व्यापमं घोटाले के इस मामले में आरोप-पत्र में शामिल किया था, उसमें राजभवन का नाम भी था। उसमें मिनिस्टर-एक, मिनिस्टर-दो और एम/एस का उल्लेख था। ये कौन लोग हैं? सीबीआई ने इनकी न कोई जांच की और न ही इस मामले में इन लोगों से कोई पूछताछ की। इसके अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पूर्व निजी सचिव और उनके नजदीकी विदिशा के गुलाबसिंह किरार का नाम भी इस महाघोटाले में शामिल था। सीबीआई इनसे भी दूर ही रही।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा, चिकित्सा शिक्षा विभाग का प्रभार रहते हुए स्वयं मुख्यमंत्री ने मार्च 2011 में विधानसभा में स्वीकार किया था कि वर्ष 2009 की प्रवेश परीक्षा में 114 लोगों की गलत नियुक्ति हुई है। मुख्यमंत्री ने विधानसभा में ही एक प्रश्न के उत्तर में व्यापमं की परीक्षा में 1000 गड़बड़ी होने की बात स्वीकार की थी, इसकी भी पड़ताल सीबीआई ने नहीं की।

सिंह ने कहा, व्यापमं घोटाले के बाद 55 मौतें हो चुकी हैं। ये सभी घोटाले से जुड़े हुए लोग थे। इनमें एक प्रमुख आरोपी पटेल थे, जो रायपुर में अपने कमरे में फांसी पर झूलते मिले थे। जबलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. साकल्ले, जो पीएमटी परीक्षाओं के माध्यम से फर्जी भर्तियों की जांच कर रहे थे, उन्हें जिंदा जला दिया गया। उनके अपराधी आज तक पकड़े नहीं गए। सीबीआई ने इस संबंध में भी कोई जांच नहीं की। उल्टा सीबीआई ने 23 मौतों में क्लीनचिट दे दी कि ये व्यापमं से जुड़ी मौतें नहीं हैं।

उन्होंने कहा, इस घोटाले को उजागर करने वाले डॉक्टर आनंद राय ने सीबीआई को व्यापमं महाघोटाले से संबंधित 15 शिकायतें कीं, उनकी न तो सीबीआई ने जांच की और न ही कोई एफआईआर दर्ज की गई। व्यापमं की 55 परीक्षाओं में घोटाले हुए, इसकी भी कोई जांच नहीं की गई, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण जांच थी ट्रांसपोर्ट कान्सटेबल भर्ती की, जिसमें गोंदिया के लोगों की भर्ती हुई थी।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा, दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रदेश के लाखों ऐसे विद्यार्थी दिन-रात मेहनत करके व्यापमं की परीक्षाओं में बड़ी उम्मीद से शामिल हुए थे। उन्हें सिर्फ इसलिए सफलता नहीं मिली, क्योंकि वे आर्थिक रूप से सक्षम नहीं थे। सीबीआई भी अब राज्य सरकार के साथ इन बच्चों के प्रति किए गए अपराध की सहभागी बन गई है।

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