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दिग्विजय की नर्मदा परिक्रमा को सत्यमित्रानंद के समर्थन से संघ सकते में!

इंदौर, 31 अक्टूबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा से भले ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) चिंतित न हो, मगर इस परिक्रमा की सराहना कर और शामिल होने की इच्छा जताकर हरिद्वार स्थित भारत माता मंदिर के संस्थापक व ज्योर्तिमठ के पूर्व शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि ने संघ को सकते में ला दिया है।

सत्यमित्रानंद 25 से 29 अक्टूबर तक इंदौर प्रवास में रहे, वे यहां एक भक्त के निवास पर रुके। इसी दौरान उन्हें पूर्व मंत्री सुभाष सोजतिया के जरिए दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा का पता चला। इस पर उन्होंने दिग्विजय सिंह को पत्र लिखकर उनका मनोरथ पूरा होने की शुभकामनाएं देने के साथ इच्छा जताई थी कि वे भी इस परिक्रमा में शामिल होना चाहते हैं।

सूत्रों के मुताबिक, सत्यमित्रानंद का पत्र सार्वजनिक होने के बाद यहां दो दिवसीय प्रवास पर पहुंचे संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी उनसे मुलाकात की। 28 अक्टूबर की शाम दोनों के बीच न्यू पलासिया क्षेत्र स्थित गिरि के भक्त के निवास पर एक कमरे में लगभग एक घंटे तक कई मुद्दों पर गहन चर्चा हुई। इस दौरान गिरि ने भागवत को स्वयं बताया कि उन्होंने दिग्विजय को परिक्रमा के संदर्भ में पत्र लिखा है और वह स्वयं भी परिक्रमा में शामिल होना चाहते हैं। गिरि की बात से भागवत थोड़े असहज हुए।

सूत्रों का दावा है कि दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा के सामान्य रूप से चलने और इसका बहुत ज्यादा प्रचार न किए जाने, भीड़ के न उमड़ने व कांग्रेस के ही बड़े नेताओं की दूरी से भाजपा और संघ में कोई हलचल नहीं थी। मगर, सत्यमित्रानंद द्वारा दिग्विजय को समर्थन दिए जाने का पता चलने के बाद संघ ने इस परिक्रमा पर अपनी नजर रखनी शुरू कर दी है।

सत्यमित्रानंद का पत्र मिलते ही दिग्विजय सिंह ने भी जवाब देने में देरी नहीं लगाई। उन्होंने 30 अक्टूबर को गिरि को पत्र लिखकर कहा कि वे अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इस परिक्रमा में न आएं, परिक्रमा पूरी कर वे स्वयं उनके दर्शन और आशीर्वाद लेने हरिद्वार पहुंचेंगे।

संघ के मालवा प्रांतीय प्रचार प्रमुख डॉ. प्रवीण काबरा ने आईएएनएस को बताया कि संघ प्रमुख दो दिवसीय प्रवास पर इंदौर आए थे। इस दौरान उन्होंने संघ के महाविद्यालयीन स्वयंसेवकों के कार्यक्रम में और आरोग्य भारती के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। वे सत्यमित्रानंद गिरि से मिले या नहीं, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है।

उन्होंने कहा कि संघ प्रमुख भागवत यहां आए थे और उन्हें सत्यमित्रानंदके इदौर में ही होने की जानकारी मिली हो, तो हो सकता है कि दोनों की मुलाकात हुई हो।

जानकारों का मानना है कि दिग्विजय सिंह ने इस परिक्रमा के जरिए खुद को आस्थावान साबित करने की मुहिम छेड़ी है, यही कारण है कि उन्होंेने यह परिक्रमा शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती से आशीर्वाद लेकर शुरू की। अब उन्हें सत्यमित्रानंद गिरि का भी समर्थन मिल गया है। इससे एक बात तो साफ हो जाती है कि दिग्विजय को संतों का भी समर्थन हासिल है। पूर्व मुख्यमंत्री को अब तक ‘भगवा विरोधी’ करार दिया जाता रहा है, क्योंकि मालेगांव विस्फोट हो या हैदराबाद विस्फोट या समझौता एक्सप्रेस विस्फोट कांड, ऐसे कृत्यों को ‘भगवा आतंकवाद’ का नाम उन्होंने ही दिया था।

वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया का कहना है कि भारतीय राजनीति की यह सबसे बड़ी खूबी है कि संत अपनी भूमिका का निर्वाहन करने के साथ राजनीति में अपनी जगह तलाशते रहते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कई संतों से निकटता रही, वहीं दिग्विजय सिंह के शासनकाल में भी उनका संतों से जुड़ाव रहा, उमा भारती भी संत हैं। अर्थ साफ है कि अनादिकाल से सत्ता और संतों का आपस में जुड़ाव रहा है।

ज्ञात हो कि दिग्विजय सिंह ने अपनी पत्नी टीवी पत्रकार अमृता राय के साथ दशहरे के दिन से नर्मदा परिक्रमा की शुरुआत की थी। यह यात्रा लगभग छह माह की है, इस दौरान वे 3,300 किलोमीटर का रास्ता तय करेंगे। वे इस यात्रा को पूरी तरह आध्यात्मिक बता रहे हैं। देखना होगा कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के बड़े नेताओं के शामिल होने पर यह परिक्रमा आध्यात्मिक ही रहती है या राजनीतिक रंग ले लेती है।

दिग्विजय सिंह की पहचान हर मुद्दे पर अपनी राय जाहिर करने वाले नेता की रही है, मगर वे इस परिक्रमा के दौरान किसी तरह के राजनीतिक मसलों पर अपनी राय जाहिर नहीं कर रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि उनका यूं शांत रहना ही कहीं नई किस्म की राजनीति की शुरुआत तो नहीं है!

राजनीति के गलियारों में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ‘नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा’ के बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा को काफी अहम माना जा रहा है।

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