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गूगल डूडल ने नैन सिंह रावत पर प्रकाश डाला

नई दिल्ली, 21 अक्टूबर (आईएएनएस)| लगभग 150 साल पहले उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र से नैन सिंह रावत नामक युवक तिब्बत का सर्वेक्षण करने के लिए यात्रा पर निकला।

एक ऐसी यात्रा जिस पर उनसे पहले जाने की किसी ने हिम्मत नहीं की थी। गूगल डूडल ने शनिवार को इस पर प्राकश डाला। इलाका कठिन था, संसाधन अल्पविकसित थे लेकिन फिर भी रावत तिब्बती भिक्षु के रूप में ल्हासा के सटीक स्थान और ऊंचाई को निर्धारित किया, त्सांगपो नदी का नक्शा बनाया और थोक जालुंग की सोने की खदानों के बारे में बताया।

गूगल ने कहा, उन्होंने एक सटीक माप गति को बनाए रखा। उन्होंने 2000 चरणों में एक मील को पूरा किया और एक माला का उपयोग करके उन चरणों को मापा। उन्होंने अपनी प्रार्थना चक्र और कौड़ी के खोल में एक कंपास छिपाया और यहां तक कि लोगों को एक भिक्षु के रूप में भ्रम में भी डाले रखा।

गूगल ने रावत के 187वें जन्मदिन पर डूडल बनाया। उनका जन्म 1830 में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में हुआ।

ब्रिटिश 19वीं शताब्दी में तिब्बत का नक्शा बनाना चाहते थे लेकिन उस समय यूरोपीय लोगों का हर जगह स्वागत नहीं हुआ करता था।

उन्हें ज्ञान की प्यास थी। उन्हें अपने राजनीतिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए गोपनीयता की भी आवश्यकता थी जिसने उन्हें भौगोलिक अन्वेषण में प्रशिक्षित, उच्च शिक्षित और बहादुर स्थानीय पुरुषों के समूह को बनाना पड़ा। वह पडितों के नाम से जाने जाते थे। रावत उनके बीच प्रमुख थे।

लेकिन उनकी यात्रा ने ब्रिटिश के तत्कालीन राजनीतिक लक्ष्यों के आलावा कई उद्देश्यों की पूर्ती की। त्सांगपो के उत्तरी क्षेत्र के उनके नक्शे ने यह तथ्य स्पष्ट किया कि तिब्बत की बड़ी नदी और असम की ब्रह्मपुत्र नदी असल में एक ही नदी है।

1865-66 में रावत ने काठमांडू से ल्हासा तक की 2,000 किलोमीटर की यात्रा की और फिर मानसरोवार झील से वापस भारत लौटे। उनकी आखरी और महान यात्रा 1873-75 के बीच लद्दाख में स्थित लेह से लेकर ल्हासा होते हुए तवांग तक की थी।

रावत का योगदान पूरी तरह से अपरिचित नहीं था। उन्हें 1887 में रॉयल जीओग्रैफिकल सोसाइटी ने पाट्रोन मेडल से सम्मानित किया। भारत सरकार ने 2004 में रावत का डाक टिकट जारी किया।

शनिवार को गूगल के डूडल में रावत को चित्रित किया गया। उन्हें एक अकेले और साहसी व्यक्ति को दूर तक देखते हुए दिखाया है। व्यक्ति के हाथ में माला है और उसके पास एक लाठी भी रखी हुई है।

रावत की मौत 1882 में हैजे के कारण हुई।

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