बुंदेलखंड में किसान बन जाएगा मजदूर!
भोपाल, 15 अक्टूबर (आईएएनएस)| बुंदेलखंड के हालात एक बार फिर किसानों की आंखों में आंसू ला देने वाले हैं, खेतों में बोई गई फसल बर्बाद हो चुकी है, नदी-नालों में पानी नहीं है, कुएं तालाब का पानी पीने के लिए बचाकर रखने की जद्दोजहद है।
ऐसे में किसान खेती की बजाय विकल्प तलाशने लगा है और चाहता है कि मजदूर ही बनकर क्यों न अपने परिवार का पेट भरा जाए।
राजधानी से लगभग चार साढ़े तीन सौ किलोमीटर दूर छतरपुर के सरानी गांव के किसान गुलजार बताते हैं, उन्होंने लगभग नौ एकड़ में उड़द, मूंगफली बोई थी, मगर उपज उतनी भी नहीं निकली, जितनी लागत और मेहनत लगी। बरसात बहुत कम हुई है, इस वजह से आगे का तो भगवान ही मालिक है। कुछ सब्जियां लगाई हैं, जिससे परिवार का पेट भर जाएगा।
बुंदेलखंड के हालात का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने राज्य की 110 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित किया है, जिसमें 48 यहां के पांच जिलों की हैं। छतरपुर की 11, दमोह की 7, पन्ना की 9, सागर की 11, टीकमगढ़ की 10 तहसीलों को सूखा प्रभावित घोषित किया गया है।
बुंदेलखंड दो राज्यों मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों को मिलाकर बनता है। इस पूरे इलाके का एक जैसा हाल है। किसान यही आस लगाए है कि शायद आने वाले दिनों में कुछ पानी बरस जाए तो उसकी रबी की बोवनी (बुआई) हो जाए। ऐसा नहीं हुआ तो पलायन तय है।
छतरपुर के घुवारा में शनिवार को जल-जन जोड़ो अभियान द्वारा आयोजित किसान एवं पानी सम्मेलन में पहुंचे किसानों ने हालात का ब्यौरा दिया। उन्होंने बताया कि आने वाले दिन उनके लिए बहुत खराब होने वाले हैं, क्योंकि खेती होगी नहीं, पीने के पानी को जूझना पड़ेगा, काम मिलेगा या नहीं इसका भी भरोसा नहीं है। दिवाली के बाद तो गांव छोड़ने का मन बना रहे हैं।
जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने पानी और किसानी पर गहराए संकट के लिए सरकारों और राजनीतिक दलों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड वह इलाका है, जहां दुनिया की सबसे बेहतर और सुरक्षित जल संरचनाएं हैं, उनके रख-रखाव पर ही बीते 70 सालों में ध्यान नहीं दिया गया। जो दल सत्ता में आता है, वहीं दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार ठहराने लगता है। एक-दूसरे का हिसाब मांगता है और करता कुछ नहीं।
उन्होंने कहा, बुंदेलखंड के किसानों को खुद आगे आना होगा, सरकारें कुछ नहीं कर सकतीं। इसलिए दूसरे सूखाग्रस्त इलाकों से सीख लेकर यहां का किसान खेती को फायदे का धंधा बनाएं। ऐसा संभव है, इसके लिए महाराष्ट्र और कर्नाटक के किसान उदाहरण हैं, जिन्होंने बुंदेलखंड से कम बारिश में भी खेती से अपना जीवन बदल लिया है। इसके साथ अपनी पुरानी जल संरचनाओं को दुरुस्त कर इलाके को पानीदार भी बनाना होगा।
बुंदेलखंड आपदा निवारण मंच के अध्यक्ष रामकृष्ण शुक्ल कहते हैं, एक समय बुंदेलखंड पूरे देश को गेहूं, दलहन एवं तिलहन देता था। यहां के किसान पूरी तरह समृद्ध थे, लेकिन आज किसान अत्महत्या करने को मजबूर है। किसान खुद पानी संरक्षण के लिए काम करें तभी यह इलाका सूखे से उबरेगा, क्योंकि सरकारों के भरोसे कुछ नहीं होता।
वरिष्ठ पत्रकार अनिल शर्मा का कहना है, आज स्थिति यह है कि इस इलाके का किसान अपने बेटे को किसान बनाने को तैयार नहीं है। बेटा मजदूरी करे, किसी दुकान पर काम करे, ऑटो रिक्शा चलाए यह तो उसे स्वीकार है, मगर खेती कराना नहीं। सरकार विकास की बात बहुत करती है, मगर हकीकत जुदा है। एक बार 7,300 करोड़ रुपये विशेष पैकेज के तौर पर मिला, मगर सात करोड़ रुपये का काम भी किसान और जनता के हित का कहीं नजर नहीं आता है। कहने के लिए गोदाम-वेयर हाउस बना दिए गए हैं।
बड़ा मलहेरा के अनुविभागीय अधिकारी, राजस्व (एसडीएम) राजीव समाधिया ने कहा है कि वे अगले मंगलवार को जनसुनवाई में किसानों की समस्या सुनकर तय समय सीमा में उन्हें सुलझाने का प्रयास करेंगे। साथ ही तत्काल निर्णय लेकर किसानों के हित में फैसले लिए जाएंगे। प्रदेश सरकार भी चाहती है कि किसानों को कोई समस्या न आए। यही कारण है कि जिले की 11 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया है।
देश-दुनिया में बुंदेलखंड की पहचान समस्याओं के कारण बन गई है। यहां की भूख, पलायन और किसान आत्महत्याएं हमेशा सुर्खियों में रहती हैं। इस इलाके में खजुराहो, ओरछा, चित्रकूट जैसे प्रमुख पर्यटन स्थल हैं, मगर उनकी चर्चा इन समस्याओं में दब जाती है।