राष्ट्रीय

सबरीमाला मंदिर मामले पर संविधान पीठ करेगी फैसला 

नई दिल्ली| केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 उम्र वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध के मामले को सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को संविधान पीठ को भेज दिया। अब यही पीठ फैसला करेगी कि क्या तय आयु वर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध भेदभावपूर्ण है और संविधान के अनुच्छेद-14, 15, 17 का उल्लंघन है। अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है, अनुच्छेद 15 धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव से बचाव और अनुच्छेद 17 के अंतर्गत छुआछूत और इसके प्रयास को समाप्त करने का प्रावधान है।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आर. भानुमति और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की सदस्यता वाली पीठ ने छह सवाल भी तैयार किए, जिन पर संवैधानिक पीठ विचार करेगी।

संविधान पीठ यह तय करेगी कि क्या 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं को मौजूदा प्रथा के तहत मंदिर में प्रवेश न करने देना उचित है और क्या जैविक कारक महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने का पर्याप्त आधार हैं और यह अनुच्छेद-14, 15, 17 का उल्लंघन करती है। संविधान पीठ यह भी तय करेगा कि इस प्रथा को अनुच्छेद 25 और 26 के अंतर्गत नैतिकता के आधार पर जारी रखना उचित है।

संवैधानिक पीठ यह भी जांच करेगी कि क्या यह प्रतिबंध अधिनियम 25 के अंतर्गत सार्वजनिक स्थान पर पूजा करने का उल्लंघन है, जिसके तहत सभी महिलाओं को मंदिर में प्रवेश का अधिकार है। क्या एक धार्मिक संस्था धार्मिक मामलों में अपने निजी अधिकार का हवाला देकर महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने से रोक सकता है।

पीठ यह भी जांच करेगी कि क्या केरल हिदू जगहों पर सार्वजनिक पूजा के नियम 3 के तहत क्या 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को मंदिर जाने से रोका जा सकता है। 12वीं सदी में बना यह मंदिर पथानामथिट्टा जिले में स्थित है और यह भगवान अयप्पा को समर्पित है।

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