हम दुनिया का सामना करने से डरते हैं : तिहाड़ जेल की महिला कैदी
नई दिल्ली, 24 सितम्बर (आईएएनएस)| तिहाड़ जेल की महिला कैदी लेस्ली रिहाई के बाद दुनिया का सामना करने को लेकर डरी हुई हैं और उनकी तरह कई अन्य महिला कैदी भी ऐसा ही सोचती हैं। उन्होंने शनिवार को यह बात कही।
लेस्ली एक दिवसीय कार्यक्रम ‘बियॉन्ड प्रिजन वाल्स-कंवर्सेशन ऑन प्रिजनर्स राइट्स’ पर बोल रही थीं। इस कार्यक्रम में कैदी, सरकारी कर्मचारी, सिविल सोसायटी, मीडिया, अकादमी संस्थान और छात्र शामिल हुए।
कार्यक्रम का मकसद जेल प्रणाली और कैदियों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों के संबंध में वार्ता शुरू करना था, जिसे तिहाड़ जेल प्रशासन ने पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो, राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल, दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क और दिल्ली विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित किया।
इस अवसर पर भारतीय विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायाधीश बी. एस. चौहान ने कहा कि आपराधिक न्याय व्यवस्था में अमीरों को जो विशेषाधिकार मिलते हैं, उन्हें संविधान के अनुच्छेद-21 (जीवन व स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद-14 (कानून के समक्ष समानता) के मद्देनजर समाप्त किया जाना चाहिए।
दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि सभी के लिए गरिमा व सम्मान महत्वपूर्ण है।
सिसोदिया ने कार्यक्रम के सुझावों व सिफारिशों को आगे बढ़ाने का वादा भी किया।
कार्यक्रम में कई विषयों जैसे ‘जेल में पहला दिन’, ‘जेल के अंदर महिलाओं व बच्चों से संबंधित मुद्दे’ और ‘रिहाई के बाद अवसरों की कमी एवं सामाजिक कलंक का सामना करने’ पर चर्चा हुई।
लेडी श्रीराम कॉलेज में पत्रकारिता विभाग की प्रमुख वर्तिका नंदा ने चर्चा में भाग लिया। उन्होंने आईएएनएस से कहा, कविताओं, कलाकृति और उपकरणों के स्वरूप में जेल में ज्यादा रचामत्मक गतिविधियां होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि इससे सकारात्मकता आएगी।
कैदियों के लिए काम करने वाले एनजीओ इंडिया विजन फाउडेंशन की निदेशक मोनिका धवन ने कहा कि महज कुछ एनजीओ ही कैदियों के लिए काम कर रहे हैं।
उन्होंने आईएएनएस से कहा कि वर्तमान में यह देखने के लिए कोई तंत्र नहीं है कि जेल से बाहर आने के बाद कैदी समाज के साथ समायोजन कर सकें और लोग उनका त्याग नहीं करें।
‘जेल के अंदर महिलाओं व बच्चों से संबंधित मुद्दे’ पर चर्चा में भाग लेने वाली लेस्ली ने कहा, मैंने जो देखा है वह यह है कि जेल से कैदी के रिहा होने के बाद लोग उनसे किनारा कर लेते हैं, यहां तक कि उनके परिवार वाले भी उनका त्याग कर देते हैं।
उन्होंने कहा, जेहन में बस एक ही डर होता है : मैं दुनिया का सामना कैसे करूंगी?