एम. नारायणन ने कहा राम रहीम का मामला बंद करने को गया था
तिरुवनंतपुरम। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को सोमवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने अपनी दो शिष्याओं के साथ दुष्कर्म करने के अपराध में 20 साल की सजा सुनाई है। वहीं डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को लेकर एक के बाद एक मामले खुलते चले आ रहे हैं। अब और नया खुलासा हुआ है कि सीबीआई के एक पूर्व अधिकारी ने सोमवार को बताया कि करीब एक दशक पहले दो वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह का मामला यह कहकर सौंपा था कि इस मामले को बंद करना है।
2009 में सीबीआई के संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए 67 वर्षीय एम. नारायणन ने कहा कि वह खुद को भाग्यशाली महसूस कर रहे हैं कि डेरा प्रमुख को दोषी करार दिए जाने के दौरान वह दिल्ली से दूर हैं। नारायणन ने कहा, मुझे 2007 में दो वरिष्ठ अधिकारियों ने यह मामला सौंपा और मुझसे कहा कि इसे बंद करना है।
नारायणन ने कहा कि हालांकि उनके लिए यह किसी अन्य मामले जैसा ही था। केरल के उत्तरी कासरगोड जिले में सेवानिवृत्ति के बाद से रह रहे नारायणन ने कहा, हम सिरसा में उनके आश्रम गए थे। राम रहीम ने मुझे मिलने के लिए 30 मिनट का समय दिया था। वहां वह एक गुफा में रहते थे, जिसमें ऐशो-आराम की सारी सुविधाएं मौजूद थीं। हम वहां पहुंचे और करीब तीन घंटे तक उनसे पूछताछ की।
इन दिनों कर्नाटक में छुट्टियां मना रहे नारायणन ने कहा, मुझे इस मामले को बंद करने के लिए कहने वाले उन दो वरिष्ठ अधिकारियों को मैं कभी दोषी नहीं कहूंगा, क्योंकि बहुत अधिक दबाव था। सीबीआई में रहने के दौरान नारायणन कई अहम मामलों से जुड़े रहे, जिनमें राजीव गांधी हत्याकांड, बाबरी मस्जिद विध्वंस, कंधार विमान अपहरण, पंजाब और जम्मू एवं कश्मीर में आतंकवाद के मामले शामिल रहे।
डेरा प्रमुख के मामले की जांच के दौरान उन पर कई तरफ से दबाव डाले जा रहे थे। वह कहते हैं, मैं बेहद सतर्क था, क्योंकि मामूली सी भी चूक मुझे निलंबित करवा सकती थी।
नारायणन ने कहा, 25 अगस्त को जब मैंने मामले में सीबीआई की विशेष अदालत का फैसला सुना तो मुझे लगा कि न्याय हो गया। वह कहते हैं, इस मामले में फैसला आने में इतना लंबा समय इसलिए लगा, क्योंकि उत्तर भारत में अमूमन अदालतें काफी वक्त लेती हैं। न तो मैं रोमांचित हूं और न ही मुझे हद से अधिक खुशी है, मेरे लिए यह रोजाना की बातों जैसा है।
वह अपने पुराने दिनों को याद करते हैं, जब आपराधिक मामलों की जांच के दौरान उनके पास मोबाइल भी नहीं हुआ करते थे। कई बार उन्हें तीन-तीन महीने के लिए बाहर रहना पड़ता था और कई बार इससे भी अधिक समय के लिए, और उनकी पत्नी उनके कुशलक्षेम को लेकर चिंतित रहती थीं।
नारायणन कहते हैं, वह सोचती रही होगी- क्या मैं जिंदा भी हूं? तो मेरे परिवार में सभी समझते थे कि मुझ पर कितना दबाव रहता था।