उत्तराखंड

हौसले को सलाम : जानें कैसे बना दिव्यांग बच्चा टॉपर

चमोली। हमारे बड़े बुजुर्ग कहा करते थे कि अगर मन कुछ करने का जुनून हो तो आदमी कुछ भी कर सकता है, कोई भी मुसीबत उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। जैसे एक कहावत है पंखों से नहीं, बुलंद इरादों से उड़ान भरी जाती है, ये बात एक बच्चे के बुलंद हौंसले को देखकर साफ हो जाती है। दिव्यांगता मन से होती है तन से नहीं, इसकी बानगी चमोली जिले के सरकारी इंटर कॉलेज सितेल में 9वीं कक्षा में पढऩे वाले एक होनहार छात्र कुलदीप में देखी जा सकती है। कुलदीप के कारनामों को देखते हुए बड़े-बड़े लोग अपने दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर हो जाते हैं। तो आइए जानते हैं कि ऐसा क्या है इस छात्र में-

सरकारी इंटर कॉलेज सितेल में 9वीं कक्षा में पढऩे वाला 15 वर्षीय दिव्यांग छात्र कुलदीप पांव से लिखता है और नाक से कम्प्यूटर के की बोर्ड में टाइपिंग करता है। शारीरिक रुप से अक्षम होने के बावजूद कुलदीप अपने इंटर कॉलेज का टॉपर भी है।

खेलने की उम्र में अगर आपके पास खेलने के लिए खलने लायक सामान न हो तो जिंदगी बोझ बन जाती है, परन्तु कुलदीप उन बच्चों में से नहीं है। मात्र 7 साल की उम्र में अपने दोस्तों के साथ खेलते हुए बिजली का तार खम्बे से टूटकर कुलदीप पर गिर गया। हादसे में वह बुरी तरह झुलस गया, उसके परिजन उपचार के लिए बेस अस्पताल श्रीनगर ले गए। लेकिन प्राथमिक उपचार के बाद डाक्टरों ने बेस अस्पताल में संसाधनों की कमी के चलते कुलदीप के परिजनों को बेहतर इलाज के लिए चंडीगढ़ ले जाने की सलाह दी।

परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण कुलदीप के परिजनों ने श्रीनगर बेस अस्पताल में ही उसका उपचार जारी रखा। करंट के चपेट में आने के कारण कुलदीप के दोनों हाथों को कोहनी से नीचे काटना पड़ा। तीन माह तक बेस अस्पताल में रहने के बाद कुलदीप को परिजन घर ले आए। अगर ये दुर्घटना किसी और के साथ हुई होती तो वो शायद घर में ही कैद हो जाता लेकिन कुलदीप ने अपने पिता से स्कूल जाकर अपने दोस्तों के साथ आगे पढऩे की इच्छा जाहिर की।

सविल सेवा ज्वाइन करना चाहता है कुलदीप

कुलदीप ने हाथ न होने के बावजूद पढ़ाई से अपने नए सफर की शुरुआत की। कुलदीप की लगातार मेहनत और लगन का ही फल रहा कि कुलदीप अपनी हर कक्षा में प्रथम स्थान हासिल करता गया। कुलदीप के शिक्षक और सहपाठियों का कहना है कि वो पढ़ाई के साथ-साथ कबड्डी, वॉलीबॉल, बेडमिंटन और कैरम भी अच्छा खेलता है। कुलदीप ने बताया कि वह भविष्य में सिविल सेवा ज्वाइन करना चाहता है ताकि वह अपने जैसे दिव्यांगों की मदद कर सके।

क्या कहा प्रधानाचार्य ने

कुलदीप के प्रधानाचार्य का कहना है कि वह बहुत ही मेधावी छात्र है। उन्होंने कहा कि हाथ न होने के बावजूद कुलदीप का लेख बहुत स्पष्ट और सुंदर है। कुलदीप से विद्यालय में सामान्य छात्रों की तरह व्यवहार किया जाता है और गलती करने पर दंडित भी किया जाता है।

कुलदीप ने अपनी शारिरीक अक्षमता को कभी भी अपने बुलंद हौंसले और मजबूत इरादों के आगे नहीं आने दिया। कुलदीप जैसे छात्र आज उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा बनकर उभरा है जो अपनी कमजोरियों को मजबूरी का नाम देते हैं। कुलदीप जैसे छात्रों से सभी को सीख लेनी चाहिए कि अगर इरादे मजबूत हो तो कामयाबी खुद पीछे भागती है।

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