खेल

ध्यानचंद को ‘भारत रत्न’ देने पर ही खेल दिवस की सार्थकता

नई दिल्ली, 27 अगस्त (आईएएनएस)| ओलंपियन मुक्केबाज अखिल कुमार, द्रोणाचार्य अवार्डी कोच अजय कुमार बंसल, जूडो ओलंपियन यशपाल सोलंकी, अंतर्राष्ट्रीय तैराक मीनाक्षी पाहूजा सहित जाने माने खिलाड़ियों और कोचों ने रविवार को एक स्वर में मांग की है कि हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान-भारत रत्न से नवाजा जाए तभी जाकर खेल दिवस की सार्थकता होगी।

फिजीकल एजुकेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पैफी) और दिल्ली खेल पत्रकार संघ (डीएसजेए) द्वारा संयुक्त रूप से राष्ट्रीय खेल दिवस के महत्व को लेकर रविवार को यहां कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित सेमीनार में खिलाड़ियों और वक्ताओं ने एक स्वर में यह विचार व्यक्त किया।

सभी का मानना था कि भारत रत्न पर मेजर ध्यानचंद का सबसे पहले हक था और यह सम्मान तो उन्हें बिना मांगे मिल जाना चाहिये।

सेमीनार में ओलंपियन मुक्केबाज अखिल, हॉकी के द्रोणाचार्य एके बंसल, जूडो ओलंपियन यशपाल, मैराथन धाविका सुनीता गोदारा, अंतर्राष्ट्रीय तैराक मीनाक्षी, डीएसजेए के अध्यक्ष एस. कन्नन और सचिव राजेंद्र सजवान और वरिष्ठ खेल पत्रकार राजारमन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ध्यानचंद की

शख्सियत बहुत बड़ी है और उन्हें यह सम्मान मिलना ही चाहिये।

इस अवसर पर पैफी के राष्ट्रीय सचिव पीयूष जैन ने बताया कि देश के 251 शहरों में 29 अगस्त के राष्ट्रीय खेल दिवस को लेकर एक साथ पैफी की ओर से खेल दिवस समारोह मनाया जाएगा। 10 शहरों में इसकी शुरूआत हो चुकी है। उन्होंने कहा, इसका उद्देश्य यही है कि हम दद्दा को याद करें और उनकी याद में कुछ गतिविधियां करें।

बंसल ने कहा, कुछ समय पहले हमने दद्दा (ध्याचंद) के लिये प्रदर्शन किया था और उस समय मैंने दद्दा के बेटे अशोक ध्यानचंद को कहा था कि हम अवार्ड क्यों मांग रहे हैं। उनकी शख्सियत बहुत बड़ी है। उन्हें तो यह सम्मान बिना मांगे ही मिल जाना चाहिये। खेल दिवस एक दिन नहीं बल्कि सालों साल चलते रहना चाहिये। हमें रोजाना ही खेल दिवस मनाना चाहिये।

अखिल ने खेल दिवस के लिये जोर देते हुये कहा, खेल दिवस का मतलब तभी है जब हम अपने स्वास्थ्य के प्रति पूरी तरह जागरूक हों और देश के लोग शारीरिक रूप से फिट रहें। देश में यह संस्कृति पनपनी चाहिये कि बच्चे कोई न कोई खेल जरूर खेलते रहें और खुद को अनावश्यक गतिविधियों से दूर रखें।

सोलंकी ने कहा, हमारे जन्म से पहले के इस खिलाड़ी की गाथा को हम आज भी जिस तरह याद कर रहे हैं उससे यह पता लगता है कि वह कितने महान थे। मेरा मानना है कि खिलाड़ियों की सेवा को उनके संन्यास के बाद लिया जाना चाहिये। ऐसा देखने में आया है कि पिछले 20 वषरें में जिन खिलाड़ियों ने अच्छे परिणाम दिये हैं उनमें से 90 फीसदी अब खेलों में ही शामिल नहीं हैं जबकि उन्हें वापिस खेलों में लाया जाना चाहिये।

मीनाक्षी ने कहा, हम इस दिन को इतना बड़ा दिन बना दें कि सरकार खेल को अनिवार्य बनाने के लिये मजबूर हो जाए। स्कूल और कॉलेज स्तर पर खेलों को ज्यादा गंभीरता के साथ लिया जाना चाहिये तभी जाकर देश को अच्छे खिलाड़ी मिल पाएंगे।

एशियाई चैंपियन रह चुकी सुनीता गोदारा ने भी इस बात का जोर दिया कि हर खिलाड़ी को अपने खेल को प्रमोट करना चाहिये। यदि ऐसा होता है तो खेलों का परिश्य अपने आप बदल जाएगा।

वरिष्ठ खेल पत्रकार राजारमन ने कहा, दद्दा ने आजादी से पूर्व देश को हॉकी का ओलंपिक स्वर्ण दिलाकर यह अहसास कराया था कि हम भारतीय हैं और कुछ कर सकते हैं। अब खिलाड़ियों की जिम्मेदारी है कि वे नये खिलाड़ी तैयार करें तभी जाकर खेल दिवस की सार्थकता हो पाएगी।

डीएसजेए के अध्यक्ष कन्नन ने कहा, खेलों के ग्रासरूट स्तर से शुरू करना होगा। जिस तरह योग को लोकप्रिय बनाया गया है उसी तरह खेलों को भी लोकप्रिय बनाना होगा। 29 अगस्त को देश के सभी स्कूलों को कहा जाए कि इस दिन पढ़ाई न हो और सिर्फ खेल आयोजन हों तभी खेल दिवस की सार्थकता होगी।

सचिव सजवान ने कहा, इस दिवस की सार्थकता तभी है जब हम स्थानीय खेलों को प्रमुखता दें और इन्हें बढ़ावा दें। बच्चों को खेल में डालना होगा लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि वे भटकें नहीं। भारतीय हॉकी टीम के पूर्व मैनेजर प्रो. एसके गुप्ता ने सलाह दी कि खेलों को सभी स्कूलों में अनिवार्य बनाया जाए और साथ ही खेलों में भागीदारी भी अनिवार्य कर दी जाए।

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