राष्ट्रीय

‘पाग’ वाले डाक टिकट पर तैयार गीत की धूम

पटना, 26 अगस्त (आईएएनएस)| मिथिला के सांस्कृतिक प्रतीक ‘पाग’ पर डाक टिकट जारी होने के उपलक्ष्य में तैयार गीत ‘डाक टिकट पर पाग सजल’ इन दिनों मिथिला सहित देशभर में काफी लोकप्रिय हो रहा है। इस गीत को लोक गायक मानवर्धन कंठ ने स्वर दिया है। इस गीत के माध्यम से मिथिलावासियों की खुशियां एवं भावनाओं को दर्शाया गया है। गीत में पाग पर डाक टिकट जारी करने के लिए सरकार के प्रति आभार व्यक्त किया गया है।

यह गीत हाल ही में मिथिलालोक फाउंडेशन द्वारा सोशल मीडिया पर जारी किया गया, जो लोगों को खूब पसंद आ रहा है।

गायक कंठ ने कहा, मिथिलालोक फांउडेशन के अथक प्रयास के कारण मिथिला के ‘पाग’ को राष्ट्रीय पहचान मिली है, जिस कारण आज देश-विदेश में पाग पर चर्चा होने लगी है। मिथिला की सभ्यता-संस्कृति की पहचान माछ, मखान और पान है, लेकिन मिथिला का सांस्कृतिक प्रतीकचिह्न ‘पाग’ है।

यह फाउंडेशन पिछले दो वर्षो से मिथिला के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक उत्थान के लिए ‘पाग बचाउ अभियान’ राष्ट्रीय स्तर पर चला रहा है। इस अभियान से देश-विदेश में फैले एक करोड़ से ज्यादा मैथिल जुड़ चुके हैं। इसी का परिणाम है कि सरकार की नजर मिथिला के पाग पर पड़ी और इसे डाक टिकट पर जगह मिली।

मिथिलालोक फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ़ बीरबल झा ने कहा, पाग बचाउ अभियान से प्रवासी मैथिलों को भी उनकी मूल संस्कृति से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। इससे देश की संस्कृति मजबूत होगी, साथ ही समाजिक समरसता एवं अर्थव्यवस्था पर अपेक्षित प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा, मिथिलालोक प्रवासी एवं स्थानीय मैथिलों के बीच सेतु का काम कर रहा है। युवा वर्ग को ‘स्किल्स ट्रेनिंग’ दी जा रही है, ताकि उन्हें रोजगार मिल सके।

मिथिला में पाग की स्वीकार्यता और उपयोगिता यूं तो श्रोत्रिय बाह्मण, बाह्मण और कर्ण कायस्थ जैसी तीन उच्च जातियों में ही है, लेकिन डॉ. झा ने कहा, पाग की कोई जाति नहीं है। पाग मिथिला की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है। हर मैथिल को पाग सम्मान का हक है। हम चाहते हैं कि जो लोग मिथिला के हैं वे सभी पाग पहनें, भले ही किसी भी जाति के हों।

उन्होंेने तमाम मैथिलवासियों से अपील की है कि वे पत्राचार में पाग वाले डाक टिकट का ही प्रयोग करें। इससे मिथिला के इस सांस्कृतिक प्रतीकचिह्न को बढ़वा मिलेगा।

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