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राइट टू प्राइवेसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसला

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ राइट टू प्राइवेसी को लेकर आज अपना फैसला सुनाएगा। जजों की पीठ यह तय करेगी कि निजता मौलिक अधिकार है या नहीं? क्या ये संविधान का हिस्सा है? बता दें, कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली 9 जजों की पीठ ने विस्तृत सुनवाई के बाद 2 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

9 जजों की पीठ के गठन के पहले जस्टिस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने कहा था, कि ‘बड़ी बेंच पूर्व के दो फैसलों- खडक़ सिंह और एमपी शर्मा मामले का परीक्षण करेगी। वहीं, 6 और 8 जजों की पीठ के इन फैसलों में कहा था कि ‘निजता का अधिकार’ मौलिक अधिकार नहीं है।

9 जजों की पीठ का फैसला आधार कार्ड की अनिवार्यता के मामले के निपटारे में सुप्रीम कोर्ट बेंच की मदद करेगा। आधार की अनिवार्यता के खिलाफ कई याचिकाएं थीं। जिसमें कहा गया था कि आधार से व्यक्ति की निजता का उल्लंघन हो रहा है। क्योंकि इसमें दिया गया बायोमीट्रिक डाटा लीक हो सकता है।
वहीं केंद्र का कहना था कि निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना जा सकता है लेकिन इसके कई भाग हैं।

सभी हिस्सों को मौलिक अधिकार में शामिल नहीं किया जा सकता है। निजता के कई पहलू हैं। उन्हें अलग-अलग तरह से समझा जाना चाहिए। केंद्र ने कहा, ‘अगर कोर्ट निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करना चाहता है तो इसके पहलुओं को अलग-अलग नजरिए से देखा जाना चाहिए और इसकी संवैधानिक सीमाएं तय करनी चाहिए।’

चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस एआर बोबडे, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस रोहिंग्टन नरीमन, जस्टिस अभय मनोगर स्प्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अब्दुल नजीर की पीठ के सामने केंद्र ने अपने तर्क रखे। मामले की सुनवाई के आखिरी दिन जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने प्रस्ताव में कुछ संकेत दिए हैं। इसमें कहा गया था, कि ‘निजता के तीन जोन बनाए जा सकते हैं।

पहले में शादी, शारीरिक संबंध, पारिवारिक संबंध जैसे मामले होंगे जिनमें किसी को दखल नहीं देना चाहिए। यदि बहुत ही आवश्यक हो तो इसमें सरकार द्वारा दखल दिया जा सकता है। दूसरे जोन में निजी डेटा को शेयर करने का मामला है और तीसरे जोन में यह स्पष्ट किया जा सकता है। पर्सनल डेटा शेयरिंग के बाद उस पर व्यक्ति का अधिकार बना रहता है।’

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