महादेव का आशीर्वाद मानती हैं आलमआरा बनाती हैं पारे के शिवलिंग
वाराणसी। हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा है वाराणसी, यह एक ऐसा जिला है जो लोगों को अपनी परंपराओं से जोड़े हुए है। वाराणसी को सांप्रदायिक सद्भाव की नगरी माना जाता है। वाराणसी की गंगा जमुनी तहजीब की यहां की पहचान है।
इसी पहचान को जिन्दा रखे हुए है एक मुस्लिम महिला आलमआरा। इनको लोग ‘नंदिनी’ के नाम से भी जानते हैं। पहचान इसलिए क्योंकि प्रह्लाद घाट क्षेत्र में रहने वालीं आलमआरा पारे के शिवलिंग बनाती हैं, जो देश-विदेश में विख्यात हैं।
ज्ञात हो कि आलमआरा ने इस काम को शुरू करने को एक बाबा का आशीर्वाद मानती हैं। आलमआरा ने बताया कि पहले उनके पति ऑटो चलाते थे। फिर उन्होंने ऑटो चलाना इसलिए छोड़ दिया क्योंकि वह ऐसा काम करना चाहते थे जिसे और कोई नहीं करता हो। इसी जिद में करीब 7 साल ऐसे ही गुजर गए। परिवार की आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई।
फिर एक दिन एक बाबा हमारे घर आए। उन्होंने मेरे हाथ की बनी चाय पीने की इच्छा जताई। मैंने उन्हें चाय पिलाई तो वो बहुत खुश हुए। फिर उन्होंने मेरे पति से कहा कि तेरी पत्नी लक्ष्मी है, उसकी वजह से ही तुझे एक ऐसा हुनर सिखाऊंगा जो तुम्हारी सारी परेशानियां दूर कर देगा। आलमआरा ने बताया कि उस बाबा ने तरल पारे को चम्मच पर लेकर मोम बत्ती की आग पर ठोस गोली बना कर दिखाई। तभी से आलमआरा के पति ने पारे के शिवलिंग बना कर बेचना शुरू कर दिया।
उल्लेखनीय है कि पारे को ठोस रूप में बदलने की प्रक्रिया बहुत जटिल है। करीब 5 घंटे तक ये चलती है। आस्थावान लोगों का मानना है कि पारा न केवल भगवान शिव का अंश है बल्कि इसी से ब्रह्मांड की रचना हुई है। यही वजह है कि शिवभक्त पारे से बने शिवलिंग की पूजा को बहुत शुभ मानते हैं।
पिछले 15 सालों से यह काम कर रही आलमआरा 16 ग्राम से लेकर ढाई क्विंटल तक पारे का शिवलिंग बना चुकी हैं। इन शिवलिंगों की मांग सिर्फ वाराणसी तक ही नहीं बल्कि देश-विदेश में दूर-दूर तक है। सावन के दिनों में इन शिवलिंगों की मांग काफी बढ़ जाती है। खास बात यह है कि इतने सालों से पारे को तरल से ठोस बनाने के बावजूद आलमआरा या उनके परिवार के स्वास्थ्य पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा। इसे वो महादेव का ही आशीर्वाद मानती हैं।