जब योगीन्द्र, मुनीन्द्र का शरीर छूटा तो हम क्या हैं
महात्मा बुद्ध के एक शिष्य ने कहा- महाराज! हम आपके आदेश का प्रचार करना चाहते हैं विश्व में। उन्होंने कहा हाँ बेटा! ख्याल तो अच्छा है। लेकिन जानते हो, ये दुनियाँ वाले कैसे होते हैं, जो उपदेश देने जाओगे तुम संसार को तो, वो गालियाँ सुनायेंगे बड़ा लैक्चरर बनकर आया है। हुुँ! तो क्या करोंगे? गालियों को सुनना पड़ेगा, निन्दा होगी।
महाराज! हम ये सोचेंगे कि नहीं मारा ये ही क्या कम है। खाली गाली ही तो दिया, अपना क्या बिगड़ता है शब्द ही तो हैं। गुरू ने कहा हाँ समझदार है, अगर मान लो किसी सिरफिरे ने मार भी दिया। तो गुरु जी यह सोचेंगे कि मार नहीं डाला यही क्या कम है? अब दस बीस चप्पल मार दिये इससे क्या बिगड़ता है। थोड़ा बहुत चमड़ी में लग गया ठीक हो जायगा दो चार दिन में। ऐसे भी चोट लग जाती है लोगों को, तो दो-चार, दस दिन में ठीक हो जाती है।
और अगर मान लो कोई हाफ मैड ऐसा भी मिल गया कि उसने मार डाला। तो गुरु जी हम सोचेंगे कि यह शरीर तो अनन्त बार स्त्री, पति बाप, बेटे के काम में आया समाप्त हुआ मरा। एक बार गुरु की सेवा में शरीर समाप्त हुआ इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा। अरे! शरीर तो समाप्त होना ही है। जब योगीन्द्र, मुनीन्द्र का शरीर भी छूटता ही है तो हम कहाँ के तीस मार खाँ हैं कि हमारा शरीर बना रहेगा।