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धन की चिंता से कैसे मिलेगी मुक्ति सीखें पक्षियों से

लखनऊ। प्राय: जीवन की वास्तविकताएं कुछ और होती हैं तथा हमारी कल्पनाओं में जीवन कुछ अलग होता है। जीवन-दृष्टि का यही भेद सभी दुखों का कारण है।

मानव अपनी हर अच्छी-बुरी इच्छा पूरी होते हुए देखना चाहता है, चाहे जैसे भी हो। इस समय संसार असंवेदनशील बना हुआ है। एक मानव दूसरे के कष्ट से अपरिचित है।

कोई किसी कारणवश थोड़ा क्रोधित होता है तो दूसरे को लगता है कि उसका अपमान हो गया। सभी को हर बात, व्यवहार तथा गतिविधि पर अपनी बातों-इच्छाओं का प्रभाव चाहिए। सभी चाहते हैं कि जो बात वे बोलें, वही सर्वमान्य हों। क्या यह संभव है?

वास्तव में ज्ञान आज अभिनय तथा प्रदर्शन का प्रतीक बन चुका है। ज्ञानीजन अपने ज्ञान का बोझ जैसे संभाल नहीं पा रहे। उन्हें अपना यह ज्ञान किसी न किसी प्रकार प्रकट करना होता है, चाहे सुननेवाले योग्य हों अथवा नहीं। क्या इस प्रकार कोई ज्ञान का समुचित प्रसार कर सकता है?

प्रकृति तथा पशु-पक्षी की जीवनचर्या से आभास होता है कि इनकी दुनिया कितनी सहज व सरल है। ये प्राकृतिक नियमों का पूर्ण पालन करते हैं।

स्वयं को प्रकृति से श्रेष्ठ नहीं समझते। इनमें बुद्धि, विवेक, प्रज्ञा तथा आत्मिक ज्ञान की भावनात्मक प्रतियोगिताएं नहीं होतीं। ये अपने वयस्क अनुभवों से अपने परिवेश को यत्नपूर्वक सुखी-संपन्न रखते हैं। अपने बच्चों को बिना किसी प्रतिलाभ के प्रेम से पालते हैं।

पक्षी नीड़ में अपने बच्चों को स्वयं से लिपटा कर रखते हैं। खाद्यान्न, रहन-सहन, चिकित्सा तथा भोग-विलास आदि के लिए इन्होंने चमचमाती कृत्रिम दुनिया नहीं बनाई। आप कह सकते हैं कि इनमें इसकी क्षमता ही नहीं थी।

पर इससे यह तथ्य नहीं बदलता कि इनके जीवन में जीवन-आवश्यकताओं का भेद नहीं है, न ही इनके बीच धनी-निर्धन का कोई विचार होता है। इसीलिए इन्हें कृत्रिम जीवन की विवशता में पडऩे की कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ती। सदियों से इनका प्राकृतिक जीवन इसी स्थिति में चलता हुआ आया है।

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