दिखावा बनकर न रह जाये आचार संहिता
उत्तराखंड। चुनाव आयोग द्वारा पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर व गोवा के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही आचार संहिता के उल्लंघन के मामले भी तेजी से सामने आ रहें हैं। यहां तक कि अनेक वरिष्ठ नेताओं और राज्यों के मंत्रियों तक पर इसके उल्लंघन के आरोप लगे हैं। जिसका राजनीतिक पार्टियां खुद इसका उल्लंघन कर रही है, वही दूसरों पर इसकी धज्जियां उड़ाने का आरोप भी लगें। चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का हल्के में नहीं लेना चाहिए, इसके नीचे शून्यता की स्थिति विडम्बना ही कही जायेगी। ऐसी स्थिति में शून्य तो सदैव ही खतरनाक होता ही है पर यहां तो ऊपर-नीचे शून्य ही शून्य है, कोरा दिखावा है। आरोपियों पर सख्त कार्रवाई के लिये कड़ा प्रशासन और तेजी से कार्रवाई का नितान्त अभाव है।
बीजेपी विधायक संगीत सोम के खिलाफ मेरठ में चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन और नफरत फैलाने के इल्जाम में केस दर्ज हुआ है। सोम मेरठ की सरधना सीट से बीजेपी उम्मीदवार हैं। उनके ऊपर इल्जाम है कि वो चुनाव प्रचार के दौरान अपनी एक ऐसी वीडियो फिल्म दिखा रहे थे जिसमें मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उनकी गिरफ्तारी के शॉट्स, दंगों के इल्जाम में उन पर लगे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) हटाने के लिए हुई महापंचायत के शॉट्स और दादरी में अखलाक की हत्या के बाद दिया गया भाषण दिखाया जा रहा था। चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी आचार संहिता के उल्लंघन के लिए नोटिस जारी किया है। केजरीवाल ने लोगों से कहा था कि कांग्रेस और भाजपा पैसा बांटेगी। लोग नई नकदी स्वीकार कर लें और महंगाई को देखते हुए 5,000 की जगह 10,000 रुपये लें, लेकिन सब लोग वोट ‘आप’ को ही दें। चुनाव आयोग ने कहा कि ‘आप’ नेता का बयान रिश्वत के चुनावी अपराध को उकसाने और उसको ब?ाने वाला है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने उत्तर प्रदेश की सत्ता में काबिज होने पर गरीब तबके को नकदी बांटने की घोषणा से आचार संहिता का उल्लंघन किया है। समाजवादी पार्टी ने भी इसी तरह चुनाव आचार संहिता का धताई है। गौरतलब है कि जबसे आचार संहिता लागू हुई तबसे बरेली जिले में सबसे ज्यादा आचार संहिता के उल्लंघन के मामले सामने आए हैं। सभी दलों की दौ? येन-केन-प्रकारेन सत्ता प्राप्त करना या सत्ता में भागीदारी करना है और इसके लिये वे चुनाव आचार संहिता का बार-बार और कई बार खुली अवमानना कर रहे हैं।
ैध्यान देने वाली बात है कि सभी पार्टियों और उनके नेताओं पर चुनाव आचार संहिता के प्रतिकूल आचरण करने के आरोप लगे हैं, जिन्होंने भडक़ाऊ भाषण और प्रलोभन देकर अपनी पार्टी को भी धर्मसंकट में डाल दिया है। इन नेताओं के भाषण और चुनाव प्रचार में बरती जा रही धांधलियों को निर्वाचन आयोग ने काफी गंभीरता से लिया है और उन्हें नोटिस भेजा है। ऐसा लगता है कि हमारे नेताओं को आचार संहिता के पालन की बहुत चिंता नहीं है। वे मतदाताओं को लुभाने के लिए हर तरह के टोटके आजमाने को आतुर हैं।
चुनाव चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का- हर चुनाव में आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के अनेक केस दर्ज होते हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि चुनाव खत्म होते ही इस तरह के उल्लंघन के मुकदमे फाइलों में दफन होकर रह जाते हैं। न तो कभी इन मामलों में किसी आरोपी की गिरफ्तारी की बात सुनी गई और न कोई ठोस विवेचना। फिर क्यों चुनाव आचार संहिता का नाटक चलता है? जिसे बड़े राजनीतिक नेता हर किरदार अपने-अपने तरीके से निभाते रहते है।