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नर्मदा नदी को ‘आधुनिक पुरुरवा’ की दरकार 

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भोपाल | नर्मदा नदी का बहिर्गमन दृश्य और उसका कल-कल निनाद कभी रोमांचित कर दिया करता था, मगर अब जीवनदायनी इस नदी की धारा कई जगह थम रही है, तो पानी प्रदूषित हो रहा है। यह नदी फिर अपने पुराने स्वरूप में लौटे इसके लिए ‘आधुनिक पुरुरवा’ की दरकार महसूस की जा रही है।
किंवदंती है कि राजा हिरण्यकश्यप के अत्याचार और पापों से दुखी होकर नर्मदा नदी विलोपित हो गई थी और उसे वापस धारण करने के लिए कोई भी पर्वत श्रृंखला तैयार नहीं हो रही थी, क्योंकि हिरण्यकश्यप के भय से सभी आक्रांत थे। तब विंध्याचल के नरेश पुरुरवा ने नर्मदा की वापसी के लिए कठोर तप किया और उसके बाद हरे-भरे अमरकंटक (पर्यक पर्वत) ने नर्मदा की धारा को अपने में समाया।
वर्तमान दौर में नर्मदा नदी एक बार फिर कलयुगी हिरण्यकश्यपों के अत्याचारों का शिकार बन रही है। जगह-जगह जंगलों को काट दिया गया है, वहीं अवैध खनन का दौर जारी है, तो नर्मदा में प्रदूषित पानी और गंदे नालों को मिलाया जा रहा है। इसी के चलते नर्मदा पर एक बार फिर खतरा मंडराने लगा है। दुनिया में जलपुरुष के नाम से विख्यात राजेंद्र सिंह का कहना है कि नर्मदा ऐसी नदी है, जो किसी ग्लेशियर से नहीं निकलती, बल्कि पेड़ों की जड़ों से रिसने वाले पानी से प्रवाहमान होती है। इस नदी का प्रवाह सिर्फ इसलिए थमा है, क्योंकि जंगल कट गए हैं और खनन का दौर जारी है।
सिंह ने आगे कहा, “राज्य सरकार ने नर्मदा को प्रदूषण मुक्त कर प्रवाहमान बनाने के लिए नर्मदा सेवा यात्रा शुरू की है। यह अच्छी पहल है, जिन उद्देश्यों को लेकर यह यात्रा निकाली जा रही है, उस पर ईमानदारी से अमल हुआ, पौधे रोपे गए तो नर्मदा अपने पुराने स्वरूप में लौटेगी, इसमें कोई संदेह नहीं है।” नर्मदा नदी विंध्य पर्वत के अमरकंटक से निकलकर राज्य के 16 जिलों में लगभग 1077 किलोमीटर बहती है। नर्मदा नदी कई स्थानों पर सूखी हुई नजर आती है, वहीं कुछ स्थानों पर पानी स्नान के लायक तक नहीं है। इसकी वजह जंगलों की बेतहाशा कटाई और उसमें गंदे नालों के मिलने को माना जाता है।
राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मानना है कि जंगल के कटने और गंदे नालों के मिलने से नर्मदा के अस्तित्व पर संकट आया है। उनका कहना है कि इंसान ने अपने स्वार्थ के कारण जंगल काट डाले तथा धरती का सीना चीरकर तमाम खनिज निकाले और उसमें गंदा पानी छोड़कर उसे प्रदूषित किया। चौहान ने नर्मदा को फिर प्रवाहमान बनाने के लिए जन जागृति लाने के मकसद से नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा 11 दिसंबर को अमरकंटक से शुरू की।  उनका कहना है, “नर्मदा नदी के प्रवाह को प्रबल बनाने के लिए जंगलों की खाली जमीन में सघन पौधरोपण किया जाएगा। साथ ही दोनों तटों के किसानों की जमीन पर पौधे लगाने के लिए किसानों को 20 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर के मान से तीन वर्ष तक अनुदान तथा पौधरोपण की लागत में 40 प्रतिशत की सहायता दी जाएगी। इसके साथ गंदे नालों को नर्मदा में जाने से रोका जाएगा।”
वहीं नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर ने नर्मदा सेवा यात्रा पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि यह यात्रा नर्मदा को बचाने के लिए नहीं, बल्कि अपने खास उद्योगपति मित्रों को पर्यटन का ठेका और सभी संसाधनों का मेवा सौंपने के लिए निकाली जा रही है। ज्ञात हो कि राज्य सरकार ने अमरकंटक से 11 दिसंबर को 144 दिन की सेवा यात्रा शुरू की है। यह यात्रा लगभग 1100 गांव से होकर गुजरेगी और 3,350 किलोमीटर का रास्ता तय करेगी। इस यात्रा का समापन 11 मई 2017 को अमरकंटक में ही होगा। इस यात्रा के दौरान जगह-जगह गोष्ठी, जनसंवाद, परिचर्चाएं आयोजित की जा रही हैं। मुख्य यात्रा में गांवों से निकलने वाली उप यात्राएं इसमें शामिल हो रही हैं। नर्मदा के घाटों पर आरती हो रही है।
सरकारी तौर पर इस बात के दावे किए जा रहे हैं कि नर्मदा सेवा यात्रा को भारी जन समर्थन मिल रहा है। यही कारण है कि इस यात्रा के दौरान अब तक पांच हजार से ज्यादा किसान अपने खेतों में पौधरोपण की सहमति दे चुके हैं, वहीं लगभग सात हजार पौधे लगाए भी जा चुके हैं।  नर्मदा नदी के आसपास के जंगलों की वीरानी और नदी का थमा प्रवाह हर नर्मदा प्रेमी को विचलित कर देता है, अगर वास्तव में यह वीरान जंगलों में हरियाली लौटी और नर्मदा का प्रवाह पूर्ववत हुआ तो उसे यात्रा की सफलता के तौर पर गिना जाएगा।

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