उत्तर प्रदेशप्रदेश

मयावती को सवर्णो से ज्यादा मुस्लिमों पर भरोसा

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लखनऊ | उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में राजनीतिक दल जाति व धर्म समेत हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं। प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने वर्ष 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के सहारे पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। उस समय उन्होंने 139 सीटों पर सवर्णो को टिकट दिया था, लेकिन बीते दस वर्षो में उनका झुकाव सवर्णो की जगह मुस्लिम मतदाताओं की ओर ज्यादा हो गया है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में अयोध्या सीट हमेशा सुर्खियों में रहती है। इस बार भी चुनाव से पहले अयोध्या विधानसभा सीट को लेकर चर्चा गरम है और इस क्षेत्र पर सबकी निगाहें टिकी हैं। दलित-मुस्लिम गठजोड़ फार्मूला को लेकर मैदान में उतरीं बसपा अध्यक्ष मायावती ने एक बड़ा दांव खेला है। इसी फार्मूला के तहत उन्होंने किसी मुस्लिम उम्मीदवार को इस सीट से मैदान में उतारा है। विदित हो कि 26 साल बाद किसी पार्टी ने अयोध्या सीट से मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया है।
मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के सहारे जब 2007 में सरकार बनाई थी, तब उन्होंने 114 ओबीसी, 61 मुस्लिम, 89 दलित और 139 सवर्ण प्रत्याशियों को टिकट दिया था। सवर्णो में सबसे अधिक 86 ब्राह्मणों को प्रत्याशी बनाया गया था। उस समय उन्होंने 36 क्षत्रिय और 15 अन्य सवर्णो को टिकट दिया था।
हालांकि वर्ष 2012 में बसपा अध्यक्ष ने इस फार्मूले को त्याग दिया था। उन्होंने साल 2012 में 113 ओबीसी, 85 मुस्लिम, 88 दलित और 117 सवर्ण प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। सवर्णो की सीटों में कटौती की गई थी। सवर्णो में 74 ब्राह्मण, 33 क्षत्रिय और 10 अन्य प्रत्याशियों को टिकट दिया गया था। लेकिन चुनाव में बसपा को करारा झटका लगा था। इस साल बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशियों को काफी अहमियत दी है। पार्टी ने 106 ओबीसी, 97 मुस्लिम, 87 दलित और 113 सवर्ण प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। पिछले चुनाव की तरह इस बार भी सवर्णो की सीटों में कटौती की गई है, लेकिन मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की गई है।
बसपा की सोशल इंजीनियरिंग को लेकर विरोधी भी सवाल खड़े कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता डॉ सी.पी. राय ने आईएएनएस से कहा कि बसपा का सवर्णो से कोई लेना देना नहीं है। मायावती सिर्फ चुनाव के दौरान वोट लेने के लिए जाति और धर्म की माला जपने लगती हैं। उनकी पूरी राजनीति जाति पर आधारित है।  इसमें भी रोचक बात यह है कि अयोध्या जैसी सीट से बसपा ने बज्मी सिद्दीकी को टिकट दिया गया है। सिद्दीकी रियल एस्टेट कारोबारी हैं।
बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से कहा कि मायावती ही उप्र में सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय की बात करती हैं। जो लोग उन पर जातिगत राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं, उन्हें पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। सपा के शासन में सिर्फ एक परिवार और एक जाति विशेष का राज होता है। जनता इनसे आजिज आ चुकी है। गौरतलब है कि राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद की वजह से अयोध्या सीट देश की राजनीति का केंद्र रही है। इतना ही नहीं 1992 के बाद से यह सीट भाजपा के पास थी, लेकिन साल 2012 में समाजवादी पार्टी के पवन पांडे ने यह सीट भाजपा के लल्लू सिंह से छीन ली थी।

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