राजनीति

आप की अंदरूनी कलह से उपजी स्वराज इंडिया पार्टी

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नई दिल्ली | देश के राजनीतिक क्षेत्र में इस साल बहुत बड़े घटनाक्रम देखने को मिले। साल 2011 में इंडिया अगेंस्ट करप्शन से निकली आम आदमी पार्टी (आप) की चमक इस साल फीकी पड़ी है। पार्टी शुरुआती दिनों से ही योगेंद्र यादव की रणनीतियों पर काम करती आई, लेकिन अंदरूनी कलह के कारण हुए विघटन ने एक नई पार्टी को उभरने का मौका दे दिया।  आम आदमी पार्टी की स्थापना से लेकर लगातार दूसरी बार सत्ता में आने तक योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने बड़ी भूमिका निभाई थी। पार्टी से जुड़े हर छोटे बड़े फैसलों में योगेंद्र यादव की सूझ-बूझ की झलक देखने को मिलती थी, लेकिन वर्ष 2016 में वैचारिक मतभेदों की वजह से योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, लेकिन योगेंद्र यादव ने मैदान नहीं छोड़ने की जिद में एक नई पार्टी स्वराज पार्टी का गठन कर अपने मंसूबे साफ कर दिए।
साल 2016 में योगेंद्र यादव और केजरीवाल में वैचारिक मतभेदों की आवाजें पार्टी की दीवारें लांघकर सत्ता के गलियारों में गूंजने लगीं। योगेंद्र और प्रशांत पर केजरीवाल को पार्टी के संयोजक पद से हटाने की साजिश रचने के आरोप लगे। योगेंद्र और केजरीवाल के बीच यह वैचारिक लड़ाई समय के साथ-साथ बढ़ती चली गई। पार्टी दो खेमों- योगेंद्र समर्थकों और केजरीवाल समर्थकों के बीच बंटती दिखाई दी। हालात इस कदर बिगड़ गए कि आप के नेता संजय सिंह ने संवाददाता सम्मेलन में प्रशांत के पिता शांति भूषण के उस बयान को लेकर निशाना साधा, जिसमें उन्होंने कहा था कि केजरीवाल के स्थान पर योगेंद्र यादव को संयोजक बनाया जाना चाहिए।
संजय सिंह ने कहा था कि पार्टी के भीतर कुछ नेता केजरीवाल को निशाना बनाकर उन्हें राष्ट्रीय संयोजक के पद से हटाने का प्रयास कर रहे हैं और पार्टी को बदनाम कर रहे हैं। पार्टी के भीतर संकट उस वक्त और गहरा गया जब प्रशांत भूषण की ओर से लिखा गया पत्र सार्वजनिक हो गया। इस पत्र में भूषण ने कहा था कि एक व्यक्ति केंद्रित प्रचार अभियान से पार्टी दूसरे दलों की तरह दिखेगी।  उन्होंने आम आदमी पार्टी की वेबसाइट से चंदा देने वाले लोगों की सूची हटाए जाने का सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि आप को अपने चंदे का पूरा हिसाब, पारदर्शी तरीके से लोगों के सामने रखना चाहिए।
बाकायदा, पार्टी की बैठक में योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण पर अनुशासनहीता का आरोप लगा। उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद दोनों नेताओं ने विभिन्न सार्वजनिक मंचों पर केजरीवाल से मतभेदों पर अपना रुख सामने रखा। भूषण ने योगेंद्र यादव के साथ राष्ट्रीय कार्यकारिणी को पत्र देते हुए नैतिकता व शिकायत समिति की बातों को लागू करने की मांग की थी।
स्वराज अभियान के तहत योगेंद्र और प्रशांत भूषण ने पार्टियों की सफाई और चंदे में पारदर्शिता को मुद्दा बनाया। योगेंद्र ने संगठन के भीतर अधिक स्वराज की पैरवी की थी। अन्ना हजारे ने भी केजरीवाल पर चंदे में पारदर्शिता नहीं बरतने को लेकर निशाना साधा है और योगेंद्र यादव ने केजरीवाल को चंदे का हिसाब देने को कहा है। उन्होंने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे के मामले पर केजरीवाल सहित सभी पार्टियों के नेताओं को खुली बहस की चुनौती भी दी है। योगेंद्र यादव ने आईएएनएस से कहा, “आम आदमी पार्टी से हमारा बुनियादी मतभेद विचारों और आदशरें को लेकर था। हमने स्वराज अभियान के समय से ही सोचा था कि पार्टी बनाएंगे। यह हमने किसी से छिपाया नहीं था। हालांकि, पार्टी बनाने में 15 महीने का समय लग गया।”
यादव ने बताया, “स्वराज इंडिया का गठन ही आम आदमी पार्टी की अपारदर्शिता और मूल्यों से समझौता करने के परिणामस्वरूप हुई है। हमने सोच लिया था कि मूल्यों से समझौता किसी भी हाल में नहीं करेंगे, फिर चाहे इसके परिणाम कुछ भी क्यों न हो।”

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