अलविदा अम्मा: आँखों में आंसुओं का समंदर लिए उमड़ा जन सैलाब
नई दिल्ली। तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे. जयललिता के पार्थिव शरीर को मरीना बीच पर उनके राजनीतिक गुरू एमजी रामचंद्रन की समाधि के पास दफनाया गया. जयललिता का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया. अंतिम संस्कार की रस्में जयललिता की करीबी शशिकला ने कीं। शशिकला वे हीं जिनपर जयललिता को जहर देने का आरोप लगा था। इससे पहले अम्मा के अंतिम दर्शन के लिए प्रणब मुखर्जी, मोदी और राहुल गांधी पहुंचे। उनके आखिरी सफर में चेन्नई की सड़कों पर लोग उमड़ पड़े। जिसे जहां जगह मिल रही थी, वे वहीं खड़े होकर उन्हें अंतिम विदाई दे रहे थे। इसके साथ ही यह सवाल आज हर किसी के जेहन में है कि आखिर जयललिता का दाह संस्कार करने के बजाय, उन्हें दफनाया क्यों गया? नियमित रूप से प्रार्थना करने वाली और माथे पर खास तरह का टीका लगाने वाली जयललिता को दफनाने का फैसला आखिर क्यों लिया गया? जयललिता एक आयंगर ब्राह्मण परिवार में पैदा हुईं, जहां दाह संस्कार की ही परंपरा है तो फिर दफनाने की वजह क्या है.
अंतिम संस्कार में भी टूटे कई मिथक
चंदन की लकड़ी से बने ताबूत में जयललिता का पार्थिव शरीर, जन्म से ब्राह्मण और माथे पर अक्सर आयंगर नमम लगाने वाली जयललिता का दाह संस्कार नहीं हुआ जबकि आयंगर ब्राह्मणों में दाह संस्कार की परंपरा है. आखिर क्या वजह रही कि जयललिता को दफनाया गया. अंतिम संस्कार से जुड़े लोग इसकी वजह द्रविड़ आंदोलन को मानते हैं. द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेता रहे पेरियार, अन्ना दुरई और एमजी रामचंद्रन जैसी शख्सियतों को दफनाया गया था इसीलिए जब जयललिता को अंतिम संस्कार की बारी आई तो दाह संस्कार की बजाए चंदन और गुलाब जल के साथ दफनाने का फैसला हुआ. द्रविड़ आंदोलन से जुड़े नेता नास्तिक होते हैं और सैद्धांतिक रूप से ईश्वर को नहीं मानते.
हमेशा प्रार्थना करने वाली और आयंगर नमम लगाने वाली जयललिता के बारे में तर्क दिया गया कि वो किसी जाति और धर्म की पहचान से अलग थीं. एमजीआर के समर्थकों को यकीन है कि मरीना बीच पर आज भी एमजीआर की घड़ी के टिकटिक करने की आवाज सुन सकते हैं. दरअसल बड़े नेताओं को दफनाये जाने के बाद समाधि बनाए जाने का चलन है. इसलिए भी कहा जाता है दफनाए जाने से समर्थकों को एक स्मारक के रूप में याद करने में सहूलियत होती है.